तुम्हें क्या कहूँ

तुम्हें चांद कहूं,
नहीं, तुम उससे भी हंसीन हो।
तुम्हें फूल कहूं,
नहीं, तुम उससे भी कमसीन हो।
तुम्हें नूर कहूं,
नहीं, तुम उससे ज्यादा रौशन हो।
तुम्हें बहार कहूं,
नहीं, तुम सावन का मौसम हो।
तुम्हें मय कहूं,
नहीं, तुममें उससे भी ज्यादा खुमार है।
तुम्हें नगीना कहूं,
नहीं, तुम्हारे हुस्न का दौलत बेशुमार है।
तुम्हें सूरज कहूं,
नहीं, तुममें उससे भी ज्यादा तपीश है।
तुम्हें तश्नगी कहूं,
नहीं, तुममें उससे भी ज्यादा कशिश है।
तुम्हें ख्वाब कहूं,
नहीं, तुम तो हकीकत हो।
तुम्हें यकीन कहूं,
नहीं, तुम तो अकीदत हो।
तुम्हें हुस्न-ए-बूत कहूं,
नहीं, खुदा ने तराशा तुम वो मूरत हो।
तुम्हें हूर कहूं,
नहीं, तुम उससे भी खूबसूरत हो।
अब तुम ही बताओ,
तुम्हें क्या कहूं,
तुम इन सबसे जुदा हो।
सिर्फ मेरी महबूबा हो।

देवेश साखरे ‘देव’

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