नासूर पर मरहम

नासूर पर तो मरहम भी बेअसर से निकले,
करते है याद जिनको वह बेखबर से निकले।

जब कभी मुझे पुराने दिनों की याद आती है,
तब कभी तेरी याद में उस डगर से निकले।

इश्क़ से महरूम हो कर मैखाने जाने को मैं,
दर्द भुलाने के लिए अपने ही दर से निकले।

यादों के पिटारे से निकाले मैंने खुशी के पल,
ज़िन्दगी में वो पल आज अब्तर से निकले।

लोगों में खुशियां बांटता रहता हूँ दिन भर मैं,
अकेले में दिल के ये आँसूं भीतर से निकले।

ग़म बेतहाशा दिया तूने मुझे फिरभी दिल से,
तेरे लिए खुशियों की दुआ अन्दर से निकले।

“पागल” इश्क़ को ज़िन्दगी की जन्नत समझा,
पर ये हालात जहन्नुम से भी बदतर से निकले।

✍🏼”पागल”✍🏼

डगर – रास्ता
महरूम – वंचित
मैखाना – मधुशाला
दर – दहलीज
अब्तर – बिखरा हुआ
बेतहाशा – बिना सोचे समझे
जन्नत – स्वर्ग
जहन्नुम – नरक, नर्क
बदतर – अधिक बुरा, घटिया

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