डरना मना है

डरना मना है उनका
जो मैदान जीतने चल पड़े
डटकर खड़े तूफानों में
ना माथे पर कभी बल पड़े.

दिए की लौ को क्या खौफ
मौत के झरोखों का
जो खुद ही जलकर जी रहा
उसको क्या डर हवा के झोंकों का.

बनाते बेखोफ घोंसले ऊँची डाल पर
उन्हें सांप की परछाइयों से डर नहीं लगता
उड़ते फिरते बदलो के पार
उन्हें आसमान की ऊंचाइयों से डर नहीं लगता.

पूरे वेग से बहती नदी भी
बहकर सागर में मिल जाती
सख्त धूप में तप कर
कच्ची मिट्टी भी पत्थर बन जाती है.

दुश्मन तुम्हें हरा दे दो
वो तुम्हारी दाद के लायक है
जो ठोकर खाकर भी खड़ा हो जाए
वही सबसे बड़ा महानायक है.

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