चाय और बालश्रम
चाय पर चर्चा
दूध के सारे दाँत समय से पहले ही टूट गये,
जिन्दगी की शुरुआत मे ही विधाता रूठ गये।
मजबूरियों ने हाथ मे चाय की केतली क्या पकडाई,
मैने करीब से देखी अपने बचपन की अंगडाई।
चाय की चुश्कियों मे अभिषेक अब मिलावट हो गयी,
आडी तिरछी जिन्दगी की सारी लिखावट हो गयी।
चाय से ज्यादा अब चाय पर चर्चा हो रही है,
इसकी बिक्री मे भी भारी गिरावट हो गयी है।
जरूरी नही हर एक चाय बेचने वाला चौकीदार बने,
क्योंकि गरीब के बचपन पर भारी इसकी गर्माहट हो गयी है
Nice
Thx
Good
Thanks