कला कुमारी

निशा अंधेरी काली घाटी
है तेरे काले केश
केशो में फिर हीम के मोती
खूब सजाया वेश
ओस का चुनर ओढ़ के बैठे
लोचन घुंघट डाला
कलानरेश ने आके रची है
ये पर्वत की बाला
चली पवन अट खेली करती
चुनर ले गई खीच
लाज शर्म की मारी छुपती
वो वृक्ष के बीच
काली निशा का कलंक हाकता
आया दिनकर शहरी
दिनकर को ललकार से रोके
एक सतरंगी पहरी
किरण कुंज आगे ना बढ़ियो
दिखे तेरा मन लहरी
कला कुमारी सीस चूनर ना
ऑख ना धरीयो आखरी गहरी

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

Responses

+

New Report

Close