हठधर्मी

बापू बड़े दुविधा  में पड़ गए,
लाडले ने सिंहासन का जो हट कर बैठे l
एक सिंहासन दोनों मे कैसे बांटे,
कलेजे के जो टुकड़े ठहरे l
जमीन को धर्म में बांटे ,
भारती के सीने में खंजर से लकीर काटे l
बापू यहां भी न रुके ,
महानता की लालसा मन मे थे पाले l
रोते विलकते हिन्द पर एक और एहसान कर डाले ,
विषैले, गद्दार सांप को हिन्द के कंधे डाले l
भविष्य के दंगे का एक विज बो गए  ,
हिन्द को नासूर जख्म दे गए l
गंगा, यमुना तहसीब सीखा गए ,
एक धर्म ने दिल मे बसा लिए l
दूसरे ने तोते जैसे रट डाले ,
निर्मम होने मे असानी हुआ l
सुभाष को संघ से निकाले,
उनके बढ़ते कद को देखकर घबराए l
खुदीराम को गलत राह कहकर,
बचाने से पलरा झाड़े l
जालियावाला कांड में हजारों आन्दोलनकारी वीरगति हुए,
मौन रहकर आन्दोलन वापस लिए  l
खुद को महान बनाने के चक्कर में,
गरम पंथी को गलत ठहराए l
उनके संघर्ष को झू‍ठला भी नहीं सकते,
हठधर्मी नीति को अपना भी नहीं सकते l
एक को इस्लामिक दूसरे को धर्मशाला,
सोचो इनको बापू किसने बना डाला ll

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