कवि

जब तलक मानव को
मानव मात्र से,
भेद की नजरों से देखूं तब तलक।
जब तलक समभाव मेरे में न हो,
तब तलक कविता कहूँ तो
झूठ है।
कर्म मेरा नीच है तो
कवि नहीं,
दृष्टि मेरी नीच है तो
कवि नहीं।
जो लिखूं कविता,
मुझे हक भी नहीं।
—- डॉ0 सतीश पाण्डेय

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