घुटन भरी सी जिंदगी
ए जिंदगी तू खूबसूरत है,
मगर औरों के लिए ।
मेरे लिए तो तू; केवल बोझ सी,
बन कर रह गई।
मैंने तुझे जितना भी जिया,
तूने मुझे उतना ही दिया, दर्द!
मैं लड़ाता रहा, खुद को ;
तेरी तकलीफों से ,
तेरे जुल्मों से,
मगर मुझे आजकल
तेरी बहन से ,
प्यार हो गया है ।
जहां तू जिंदगी भर रुलाती है ,
वही वो केवल सुलाती है ,
सदा सदा के लिए!
——मोहन सिंह मानुष
नकारात्मक विचारों को दिल में घर न करने दें
जिंदगी खूबसूरत है, इसे जरा संवरने दें
बिल्कुल मैडम जी! जिंदगी के दो पहलू होते हैं सकारात्मक नकारात्मक ! सुख दुख, उतार चढ़ाव, इच्छाएं, कामनाएं यह जिंदगी भर चलते रहते हैं। मगर कभी नकारात्मक पहलू पर भी काव्य होना चाहिए, डिप्रेशन मैं आए व्यक्ति के मन में शायद यही ख्याल आते होंगे ,बस यही कल्पना शब्दों में संजोयी है। हरिवंश राय बच्चन जी बगैर मदिरापान किए , मधुशाला लिख सकते हैं तो इस नकारात्मक पहलू के बारे थोड़ा हमने भी प्रयास कर लिया।
जिंदगी सुंदर हैं, दर्द तो जिणे की दवा हैं,दर्द नहीं तो जिंदगी जिंदगी ही नहीं,
बिल्कुल मैडम जी! सुख का एहसास हमें तभी होता है जब दुख को सहन करते हैं। रचना में एक टूटे हारे इंसान की व्यथा को दिखाने का प्रयास किया गया है जिसने सुख नाम कि कोई चीज ही नहीं देखी। यह किसान एवं मजदूर वर्ग से प्रभावित रचना है
विचारणीय तथ्य
🙏
nice poem
🙏
साहित्यिक संवेदना के लिहाज से टूटे हुए मन की टूटन की पराकाष्ठा को ये पंक्तियां व्यक्त कर रही हैं। इसे निरूसाहित साहित्य का नाम भी दिया जा सकता है, जो मृत्यु के वरण की ओर जा रहे मन का चित्रण कर रहा है। अच्छा प्रयास है
अगर यह बात सुशांत सिंह राजपूत की समझ में आए होती तो शायद उन्होंने इतना बड़ा कदम ना उठाया होता या उन्हें कदम उठाने पर मजबूर ना किया गया होता बहुत ही संवेदनशील मुद्दे पर लिखा है आपने मानुष जी अतुल्य रचना