आलसियों के महाराज (बाल कविता)
भिन-भिन करती, मक्खियां आई! भी-भी करते, मच्छर लाई! गोलू बड़े ही मस्त मौला, जिन्न को झट से आवाज लगाई, मुस्कुराकर जिन गोलू से बोला, चैन से सोएं मेरे साईं, मच्छरदानी! अभी लगाई। भी -भी ,भिन-भिन, मच्छर कांटे! गिन -गिन , गिन -गिन, सपनों की गहराइयों से, गोलू ने फिर की लड़ाई। ओ रे मच्छर! तुझको जरा-सी शर्म ना आई, तुझे ना आती, मुझे तो आती, नींदें मेरी बड़ी सुहानी, तुमने नालायक क्यों भगाई। ऊपर से ये मच्छरदानी... »