पहचान

कविता- पहचान
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सुन्दरता मे सुन्दर हो,
खुदा की बनाई मूरत हो,
खुद पे इतना निर्भर हो,
जब जब कोई समझाये अपने बच्चों को,
बस आप ही उनके लिए उदाहरण हो|

बिन चोट सहे, पत्थर मूरत बन नहि सकती,
बिन अग्नि मे तप ,सोना कगना बन नहीं सकती|
व्यर्थ जवानी होगी तुम्हारी,
यदि गैरो के लिए मिसाल नहीं बन सकती|

सोचो कल संग क्या ले जाओगी,
चिता पर कफ़न छोड़ कुछ ना पाओगी|
सारी मेहनत मिट्टी मिट्टी होगी,
यदि जग मे इतिहास नहीं लिख पाओगी|

परिवार भी होगा,
घर द्वार भी होगा,
हो जग कि हर खुशी तुम्हारी,
ऐसा कुछ करना होगा|

खुद अपने आप से लड़ना होगा,
सभल के पथ पर चलना होगा|
बन जाओ राही एक अनोखी,
जग के लिए ऐसा कुछ करना होगा|

उम्र जवानी प्यार निशानी,
छोड़ो ए सब दुनिया दारी|
ऐसा पालो अपने जीवन को
जहाँ सुख से सोये दुनिया सारी|

कहे “ऋषि” बड़ आस लगाए,
हो तुम भीम दिवानी यह बात
सुहाए|
रच दो जग मे इतिहास नया,
जग की महिलाओं मे, आपकी पूजा हो जाऐ|
✍✍✍✍✍✍✍✍✍✍✍✍✍✍✍✍✍
कवि -ऋषि कुमार “प्रभाकर ”
पता, ग्राम -पोस्ट खजुरी खुर्द, खजुरी
थाना- तह. कोरांव
जिला-प्रयागराज, पिन कोड 212306

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