इश्क आँच पर पकता रहा…

यूँ ही सिलसिला चलता रहा
कभी मैं कभी वो रूठता रहा
टूटने लगे दिल बेतहाशा
मगर इश्क आँच पर पकता रहा..

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जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

Responses

  1. वाह वाह, श्रृंगारिक रचना, जद्दोजदह के बावजूद प्रेम के जिंदा रहने की रचना, बहुत ही लाजवाब।

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