कहीं भीड़ में खो गई है मुहोब्बत

कहीं भीड़ में खो गई है मुहोब्बत
पहले है रोटी फिर है मुहोब्बत।
जरा पास आओ, हमें कुछ है कहना।
नहीं ठीक ऐसे सभी से मुहोब्बत।
हमें देखकर फूल भी मुंह चुराते।
बिना फूल के किस तरह है मुहोब्बत।

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Responses

  1. कवि सतीश जी की बहुत सुन्दर कविता है, बेहतर शिल्प के साथ सुंदर
    भवभिव्यक्ती , लय बद्ध शैली और शानदार प्रस्तुति ..

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