Categories: मुक्तक
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निर्झर झरता गीत
यह गीत धरा का धैर्य गर्व है, नील–गगन का यह गीत झरा निर्झर-सा मेरे; प्यासे मन का …. यह गीत सु—वासित् : चंदन–वन…
जय हिंद, जय हिंद
जय हिंद, जय हिंद, जय हिंद जय भारत, जय भारत, जय भारत, जय भारत, जय हिंद, जय हिंद। हम सबको मिलकर इसकी उन्नति में जुट…
शायरी संग्रह भाग 2 ।।
हमने वहीं लिखा, जो हमने देखा, समझा, जाना, हमपे बीता ।। शायर विकास कुमार 1. खामोश थे, खामोश हैं और खामोश ही रहेंगे तेरी जहां…
मां तूं दुनिया मेरी
हरदम शिकायत तूं मुझे माना करती कहां निमकी-खोरमा छिपा के रखती कहां भाई से ही स्नेह मन में तेरे यहां रह के भी तूं रहती…
जंगे आज़ादी (आजादी की ७०वी वर्षगाँठ के शुभ अवसर पर राष्ट्र को समर्पित)
वर्ष सैकड़ों बीत गये, आज़ादी हमको मिली नहीं लाखों शहीद कुर्बान हुए, आज़ादी हमको मिली नहीं भारत जननी स्वर्ण भूमि पर, बर्बर अत्याचार हुये माता…
बहुत अच्छी पंक्तियाँ
बहुत सुंदर
वाह , शिल्प और भाव का अद्भुत समन्वय
देश प्रेम पर आधारित चंद्रा जी की अति उत्तम रचना
बहुत खूब
सुंदर