बता तो दो

बता तो दो क्यू तुम ऐसे हो,
मेरे होकर भी परायों से कमतर हो।
यक़ीनन दोष हममें, दुनियादारी की बूझ नहीं
आकलन करें कैसे, रिश्ते- नातोंकी समझ नहीं
साफ़ कहने की आदत, सुनने की हिम्मत नहीं
पर क्या सारा दोष मेरा,तुम पाक वारी जैसे हों
बता दो क्यूं तुम ऐसे हो।
अपने जो हैं उनकी बातो पे चिलमन डालना
कङवी-से-कङवी लब्ज को हंस के टालना
इतना ही सीखें हो, कही बातों का गिरह बांधना
ये गांठ बेधते मन को, कोई नासूर जैसे हों
बता दो क्यूं तुम ऐसे हो।

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Responses

  1. बता तो दो क्यू तुम ऐसे हो,
    मेरे होकर भी परायों से कमतर हो।
    यक़ीनन दोष हममें, दुनियादारी की बूझ नहीं
    आकलन करें कैसे, रिश्ते- नातोंकी समझ नहीं
    साफ़ कहने की आदत, सुनने की हिम्मत नहीं
    —— वाह, कवि सुमन जी की बहुत ही उत्तम रचना है यह। टीस व संवेदना का बहुत सुंदर समन्वय है यह कविता।

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