मातृभाषा
दर्द बनके आँखो के किनारों से बहती है!
बनकर दुआ के फूल होंठो से झरती है!!
देती है तू सुकून मुझे माँ के आँचल सा!
बनके क़भी फुहार सी दिल पे बरसती है!!
खुशियाँ ज़ाहिर करने के तरीक़े हज़ार है!
मेरे दर्द की गहराई मगर तू समझती है!!
जाऊँ कहीं भी मैं इस दुनिया जहान में!
बन कर मेरी परछाईं मेरे साथ चलती हैं!!
होगी ग़ुलाम दुनिया ये पराई ज़बान की !
मेरी मातृभाषा तू मेरे दिल में धड़कती है!!
©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’
“होगी ग़ुलाम दुनिया ये पराई ज़बान की !
मेरी मातृभाषा तू मेरे दिल में धड़कती है!!”
_____मातृभाषा के बारे मे बहुत ही उत्कृष्ट रचना है सखी👌👌
देती है तू सुकून मुझे माँ के आँचल सा!
बनके क़भी फुहार सी दिल पे बरसती है!!
—— वाह, बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति। यह कविता कवि की उच्चस्तरीय क्षमता को परिलक्षित कर रही है। कविता में एक एक विरल काव्य बोध है। अदभुत लय है और अनुपम भाव है।
सुंदर
जाऊँ कहीं भी मैं इस दुनिया जहान में!
बन कर मेरी परछाईं मेरे साथ चलती हैं!!
बहुत खूब