सम्मान और स्थान
सम्मान और स्थान,
बनाना किसी के दिल में
आसाॅं नहीं है लेकिन,
इतना भी कठिन नहीं है।
थोड़ा सा त्याग करो गर,
निज स्वार्थ से हो कर परे।
कभी किसी के लिए भी सोचो,
ऐसी धूप खिलेगी जीवन में,
सुगन्धिं सी बिखरेगी पवन में।
सुख समेट ना पाओगे फिर तुम,
इतना सुकून मिलेगा मन में॥
______✍गीता
थोड़ा सा त्याग करो गर,
निज स्वार्थ से हो कर परे।
कभी किसी के लिए भी सोचो,
ऐसी धूप खिलेगी जीवन में,
—— कवि गीता जी द्वारा इस कविता में बहुत ही सच्ची बात कही गयी है। उत्तम प्रस्तुति
सुंदर प्रेरणा देती हुई इस लाजवाब समीक्षा के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद सतीश जी अभिवादन सर
बहुत खूब सराहनीय प्रयास
सादर धन्यवाद भाई जी बहुत-बहुत आभार🙏