मृगतृष्णा
रेत सी है अपनी ज़िन्दगी रेगिस्तान है ये दुनिया, रेत सी ढलती मचलती ज़िन्दगी कभी कुछ पैरों के निशान बनाती और फिर उसे स्वयं ही…
रेत सी है अपनी ज़िन्दगी रेगिस्तान है ये दुनिया, रेत सी ढलती मचलती ज़िन्दगी कभी कुछ पैरों के निशान बनाती और फिर उसे स्वयं ही…
समन्दर का वो किनारा साथी है हमारा, जहां बैठ घंटों है वक्त हमने गुजारा, जैसे कि उनसे सदियों से नाता हो हमारा, बहुत बार तो…
किसी पिंजरे में कैद पंछी की तरह जैसे हमारा मन भी कैद हो गया है, सामने खुली चांदनी नजर आती है पर चार दिवारियों के…
मैं हिन्दी हूं भारत की भक्त हिन्दी, संस्कृत मेरी जननी जिसमें अंकित है संस्कृति, उस संस्कृति की अब मैं उत्तराधिकारणी, उद्धरित हुई मेरे संग कई…
अजीब नौटंकी लगा रखी है जमाने ने मेरी विकलांगता पर खुल के हंसते हैं और अपनी कमी को दिन रात रोते हैं; गिर पड़ी जब…
जीवन के इस सफर में टूटी हूं कई बार, घायल होकर दर्द में तड़पी हूं कई बार, पर हर दर्द का अपना हिसाब रहा, कोई…
सोच रही हूँ डालने को बालू समंदर में ताकि राह खुल जाये मुसाफिर की; अजीब दास्ता है ये, हो सकता नहीं ये संभव, पर है…
पूर्ण समृद्ध न तो मैं हूं और न ही कोई अन्य, सर्वज्ञ तो इस जहाँ में कोई भी नहीं, हर किसी में कुछ न कुछ…
हैं बहुत यहाँ एक से बढ़कर एक, है काबिलों की बस्ती ये जहाँ , हैं कितने ही माहिर आये यहाँ और आकर चले गए न…
धूल, कंकड़, पत्थर, पहाड़ सबकी अपनी शान है, अपना मान है; हवा, जल, अग्नि सबकी अपनी पहचान है, कौन किससे भला समान है? समान कुछ…
हो चाहे कैसी भी घड़ी, आंधी तूफ़ान की लगी हो लड़ी, या मन को झुलसा रही हो अग्नि, डर हो यदि आगे हार जाने की,…
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