मृगतृष्णा

रेत सी है अपनी ज़िन्दगी रेगिस्तान है ये दुनिया, रेत सी ढलती मचलती ज़िन्दगी कभी कुछ पैरों के निशान बनाती और फिर उसे स्वयं ही…

समन्दर

समन्दर का वो किनारा साथी है हमारा, जहां बैठ घंटों है वक्त हमने गुजारा, जैसे कि उनसे सदियों से नाता हो हमारा, बहुत बार तो…

मैं हिन्दी हूं

मैं हिन्दी हूं भारत की भक्त हिन्दी, संस्कृत मेरी जननी जिसमें अंकित है संस्कृति, उस संस्कृति की अब मैं उत्तराधिकारणी, उद्धरित हुई मेरे संग कई…

पाखंड

अजीब नौटंकी लगा रखी है जमाने ने मेरी विकलांगता पर खुल के हंसते हैं और अपनी कमी को दिन रात रोते हैं; गिर पड़ी जब…

संभव-असंभव

सोच रही हूँ डालने को बालू समंदर में ताकि राह खुल जाये मुसाफिर की; अजीब दास्ता है ये, हो सकता नहीं ये संभव, पर है…

New Report

Close