इंतजार
लहरें होकर अपने सागर से आज़ाद तेज़ दौड़ती हुई समुद्र तट को आती हैं , नहीं देखती जब सागर को पीछे आता तो घबरा कर…
लहरें होकर अपने सागर से आज़ाद तेज़ दौड़ती हुई समुद्र तट को आती हैं , नहीं देखती जब सागर को पीछे आता तो घबरा कर…
महज़ ख़्वाब देखने से उसकी ताबीर नहीं होती ज़िन्दगी हादसों की मोहताज़ हुआ करती है .. बहुत कुछ दे कर, एक झटके में छीन लेती…
अरमान जो सो गए थे , वो फिर से जाग उठे हैं जैसे अमावस की रात तो है , पर तारे जगमगा उठे हैं… बहुत…
आज दिल फिर बच्चा होना चाहता है बचपन की अजूबी कहानियों में खोना चाहता है जीनी जो अलादिन की हर ख्वाहिश मिनटों में पूरी कर…
वो टहनियाँ जो हरे भरे पेड़ों से लगे हो कर भी सूखी रह जाती है जिनपे न बौर आती है न पात आती है आज…
मैं आज की नारी हूँ न अबला न बेचारी हूँ कोई विशिष्ठ स्थान न मिले चलता है फिर भी आत्म सम्मान बना रहा ये कामना…
आज फिर गूँज उठा कश्मीर सुन कर ये खबर दिल सहम गया और घबरा कर हाथ रिमोट पर गया खबर ऐसी थी की दिल गया…
अब से मैं प्यार लिखूंगी तो तुमको लिखा करूंगी वो शामें मेरी ,जो तुम पर उधार हैं , उन पर ख्वाब लिखूंगी तो तुमको लिखा…
मुझे ताउम्र ये मलाल रहेगा तुम क्यों आये थे मेरी ज़िन्दगी में ये सवाल रहेगा जो सबक सिखा गए तुम वो बहुत गहरा है चलो…
मेरे दर्द सिर्फ मेरे हैं इन्हें अपनी आँखों का पता क्यों दूँ तरसे और बरसे इन्हें अपने दर्दों से वो लगाव क्यों दूँ मेरा अंधापन…
एक ऐसी ईद भी आई एक ऐसी नवरात गई जब न मंदिरों में घंटे बजे न मस्जिदों में चहल कदमी हुई बाँध रखा था हमने…
ये जो लोग मेरी मौत पर आज चर्चा फरमा रहे हैं ऊपर से अफ़सोस जदा हैं पर अन्दर से सिर्फ एक रस्म निभा रहे हैं…
नाकाम मोहब्बत की निशानी ताज महल ज़रूरी है जो लोगो को ये बतलाये के मोहब्बत का कीमती होना नहीं बल्कि दिलों का वाबस्ता होना ज़रूरी…
प्रेम, जिसमें मैं ही मैं हो हम न हो डूब गए हो इतने के उबरने का साहस न हो वो प्रेम नहीं एक आदत है…
ओ मेरे शिव, मैं सच में तुमसे प्यार कर बैठी सबने कहा , क्या मिलेगा मुझे उस योगी के संग जिसका कोई आवास नहीं वो…
कभी कभी सोचती हूँ अगर इस पल मेरी साँसें थम जाये और इश्वर मुझसे ये कहने आये मांगो जो माँगना हो कोई एक अधूरी इच्छा…
बहुत देर कर दी ज़िन्दगी तूने मेरे दर पे आने में हम तो कब से लगे थे तुझे मनाने में अब तो न वो प्यास…
हिंदी कविता व्यंग्य शीर्षक-: हाय रे चीन (कोरोना और चाइना ) हाय रे चीन चैन लिया तूने सबका छीन कुछ भी न बचा तुझसे ऐसा…
धर्म-जाति से परे हिंदी कविता एक भयावह महामारी पर लिखना नहीं चाहती थी पर लिखना पड़ा कहना नहीं चाहती थी पर कहना पढ़ा आज कल…
ख्वाहिशें सुख गई हैं ऐसे मौसम के बदलते मिजाज़ से फसलें जैसे क्या बोया और क्या पाया सपनों और हक़ीकत में कोई वास्ता न हो…
इस हसीन शाम में , उमर की ढलान में हाथ थामे चलने को कोई मिल गया है हाँ मुझे कोई मिल गया है कल क्या…
आज की सच्ची घटना पर आधारित हिंदी कविता शीर्षक :- भरोसा आज मेरी क्यारी में बैठा परिंदा मुझे देख छुप गया मैं रोज़ उसको दाना…
तुम उस दिन जो हाँ कर देते तो किसी को नया जीवन देते पर तुम्हारी ज्यादा सतर्क रहने की आदत ने देखो किसी का मनोबल…
तूफानों को आने दो मज़बूत दरख्तों की औकात पता चल जाती है पेड़ जितना बड़ा और पुराना हो उसके गिरने की आवाज़ दूर तलक़ आती…
सोचती हूँ, क्या इस बार तुम्हारे आने पर पहले सा आलिंगन कर पाऊँगी या तुम्हें इतने दिनों बाद देख ख़ुशी से झूम जाउंगी चेहरे पे…
मैं कुछ भूलता नहीं ,मुझे सब याद रहता है अजी, अपनों से मिला गम, कहाँ भरता है सुना है, वख्त हर ज़ख़्म का इलाज है…
क्यों एक बेटी की विदाई तक ही एक पिता उसका जवाबदार है ? क्यों किस्मत के सहारे छोड़ कर उसको कोई न ज़िम्मेदार है? क्यों…
मुझे वो लाज़मी सा सब कुछ दिलवा दो जो यूं ही सबको मिल जाता है न जाने कौन बांटता है सबका हिस्सा जिसे मेरे हिस्सा…
सुनो, मुझे अपना बना लो मन को तो लूभा चुके हो अब मुझे खुद में छुपा लो हूँ बिखरी और बहुत झल्ली सी अपनी नज़रों…
कितना सरल है, सच को स्वीकार कर जीवन में विलय कर लेना संकोच ,कुंठा और अवसाद को खुद से दूर कर लेना जिनके लिए तुम…
वख्त की तेज़ धूप ने सब ज़ाहिर कर दिया है खरे सोने पर ऐसी बिखरी की उसकी चमक को काफ़ूर कर दिया है जब तक…
सबसे जुदा हो कर पा तो लिया तुमको मैंने पर ये तो बोलो कहाँ तक साथ चलोगे ? न हो अगर कोई बंधन रस्मो और…
ये जो मेरा कल आज धुंधला सा है सिर्फ कुछ देर की बात है अभी ज़रा देर का कोहरा सा है धुंध जब ये झट…
दर्पण के सामने खड़ी होकर, जब भी खुद को सँवारती हूँ उस दर्पण में तुमको साथ देख,अचरज में पड़ जाती हूँ शरमाकर कजरारी नज़रें नीचे…
मैं शिवांशी , जल की धार बन शांत , निश्चल और धवल सी शिव जटाओं से बह चली हूँ अपने मार्ग खुद ढूँढती और बनाती…
मैं कहाँ मेरे जैसी रह गयी हूँ वख्त ने बदल दिया बहुत कुछ मैं कोमलांगना से काठ जैसी हो गई हूँ मैं कहाँ मेरे जैसी…
मेरे महबूब का करम मुझ पर जिसने मुझे, मुझसे मिलवाया है नहीं तो, भटकता रहता उम्र भर यूं ही मुझे उनके सिवा कुछ भी न…
कल उस बात को एक साल हो गया वख्त नाराज़ था मुझसे न जाने कैसे मेहरबान हो गया मेरी धड़कन में आ बसा तू ये…
चलो थोडा दिल हल्का करें कुछ गलतियां माफ़ कर आगे बढें बरसों लग गए यहाँ तक आने में इस रिश्ते को यूं ही न ज़ाया…
छल और प्यार में से क्या चुनूँ जो बीत गया उसे साथ ले कर क्यों चलूँ पतंग जो कट गई डोर से वो खुद ही…
वख्त जो नहीं दिया किसी ने उसे छीनना कैसा उसे मांगना कैसा छिनोगे तो सिर्फ २ दिन का ही सुख पाओगे और मांगोगे तो लाचार…
काश इश्क करने से पहले भी एक राज़ीनामा ज़रूरी हो जाये जो कोई तोड़े तो हो ऐसा जुर्माना जो सबकी जेबों पर भारी हो जाये…
बारिश से कहो यूं न आया करे मुझे तेरा उनके बगैर आना अच्छा नहीं लगता तूने आने से पहले दस्तक तो दी थी सर्द मौसम…
मैंने उन्हें एक ख़त भिजवाया है एक लिफाफे में उसे रखवाया है देखने में कोरा न लगे,इसलिए उस लिफाफे को खूब सजाया है जो पहुचेगा…
मैं बेटी हूँ नसीबवालो के घर जनम पाती हूँ कहीं “लाडली” तो कहीं उदासी का सबब बन जाती हूँ नाज़ुक से कंधो पे होता है…
गया वख्त जो अक्सर गुज़रता नहीं तमाम रात थोडा हँसा कर थोडा रूला कर अपनापन जता गया जाते जाते कह गया मैं यही हूँ तेरे…
लोग कहते हैं , मैं अपने पापा जैसे दिखती हूँ, एक बेटे सा भरोसा था उनको मुझपर मैं खुद को भाग्यशाली समझती हूँ। मैं रूठ…
तुम अपना घर ठीक से ढूंढना ,कुछ वहीं छूट गया मेरा ढूंढ़ना उसे , अपने किचन में जहाँ हमने साथ चाय बनाई थी तुम चीनी…
रात कितनी भी घनी हो सुबह हो ही जाती है चाहे कितने भी बादल घिरे हो सूरज की किरणें बिखर ही जाती हैं अंत कैसा…
मैंने घर बदला और वो गलियाँ भी फिर भी तेरी याद अपने संग इस नए घर में ले आया एक मौसम पार कर मैं फिर…
Please confirm you want to block this member.
You will no longer be able to:
Please note: This action will also remove this member from your connections and send a report to the site admin. Please allow a few minutes for this process to complete.