अरमान
अरमान जो सो गए थे , वो फिर से
जाग उठे हैं
जैसे अमावस की रात तो है , पर
तारे जगमगा उठे हैं…
बहुत चाहा कि इनसे नज़रें फेर लूँ
पर उनका क्या करूँ,
जो खुद- ब – खुद मेरे दामन में आ सजे हैं ….
नामुमकिन तो नहीं पर अपनी किस्मत पे
मुझे शुभा सा है,
कही ऐसा तो नहीं , किसी और के ख़त
मेरे पते पे आने लगे हैं …
जी चाहता है फिर ऐतबार करना,
पर पहले भी हम अपने हाथ
इसी चक्कर में जला चुके हैं……
कदम फूँक – फूँक कर रखूँ तो
दिल की आवाज़ सुनाई नहीं देगी ,
खैर छोड़ो इतना भी क्या सोचना
के चोट खाए हुए भी तो ज़माने हुए हैं…….
अर्चना की रचना ” सिर्फ लफ्ज़ नहीं एहसास ”
Very nice👏😊
बहुत सुंदर रचना
वाह वाह बहुत खूब, यूँ ही निरंतर लिखते रहिये।
बेहद खूबसूरती के साथ
आपने भावों को रखा है..
हमें इन्तजार रहेगा आपकी ऐसी ही और रचनाओं का…
Nice
Atisunder kavita
बहुत सुंदर