मां
एक मां ही तो है जो अब भी अपनी लगती है वरना इस परायी दुनिया में कौन अपना है
एक मां ही तो है जो अब भी अपनी लगती है वरना इस परायी दुनिया में कौन अपना है
इक इक दिन करके जिंदगी गुजर गयी फूल सी जिंदगी कांटो में ढल गयी
तुम मुझे अपनी वाणी से हताहत कर सकते हो अपनी गंदी नजरों से मुझे काट सकते हो अपनी नफ़रत से मुझे मार सकते हो लेकिन…
कोई आफ़ताब तो नहीं जिंदगी में कहीं कोई दीया ही जल जाये कोई कविता हम कह नहीं पा रहे है कहीं कोई इक लफ़्ज ही…
सोचता हूं कभी कभी क्यों हो जाते है शुष्क जम जाते है क्यों रिश्ते बर्फ़ की तरह लेकिन तभी लुड़क पडते है गर्म गर्म आंसू…
न चिराग नजर आता है, ना आफ़ताब नजर आता है भीड है चारों तरफ़ मगर, ना कोई इंसान नजर आता है रंगो की ख्वाहिश थी…
पराये जज्बातों को अपना बनाने की चाहत होती है किसी की आहों में डूब जाने की चाहत होती है उम्र भर चलते रहे तनहाईयों के…
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