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लो फिर याद आ गया ,
वो बचपन सुहाना
वो झूठ का रोना , वो सच का आँखों सी आलू का टपकना
वो बेबाकी सी उदझ्ना सबसे.
वो अपने साये सी भी डरना
वो बारिश की मस्ती, वो कागज की कस्ती
वो रेत का घर, वो मिटी का खिलौना ,
वो यारो की यारी, वो यारो की नाराजगी
वो नादानी, वो मासूम सी शैतानी
वो स्कूल न जाने का बहाना
वो टीचर को सताना
लो फिर याद आ गया वो बचपन सुहाना
काश भूल पति वो बड़कपन का जमाना

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