चाहत।

October 24, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

काश। मैं टूटे दिलों को जोड़ पाता
आँधियों की राह को मैं मोड़ पाता।

पोंछ पाता अश्क जो दृग से बहे
वक्त की जो मार बेबस हो सहे।

चाहता ले लूँ जलन जो हैं जले
जो कुचलकर जी रहे पग के तले।

क्यों कोई पीये गरल होके विवश
है भरी क्यों जिन्दगी में कशमकश?

दूँ नयन को नींद, दिल को आस भी
हार में दूँ जीत का एहसास भी।

स्वजनों से जो छुटे उनको मिला दूँ
रुग्ण जन को मैं दवा कर से पिला दूँ।

डूबते जो हैं बनूँ उनका सहारा
दे सकूँ सुख, ले किसी का दर्द सारा।

माँग का सिन्दूर बहनों का बचा लूँ
दे सकूँ गर जिन्दगी विष भी पचा लूँ।

चाहता मैं वाटिका पूरी हरी हो
डालियाँ हर पुष्प,किसलय से भरी हो।

अनिल मिश्र प्रहरी।

बेरोजगारी की जलन।

October 16, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

बेरोजगारी की जलन।

नभ पर घटा घनघोर है
तम भी बिछा हर ओर है,
इन झुरमुटों को चीरकर
आता न अब शीतल पवन।
बेरोजगारी की जलन।

शत-शत किताबें क्रय किया
ले ऋण भी अगणित व्यय किया,
अब जीविका की चाह में
कब तक सहूँ पथ पर अगन?
बेरोजगारी की जलन।

घर की जरूरत बढ़ रही
तनुजा शहर में पढ़ रही,
माँ-बाप, बीबी, सब खड़े
कैसे करूँ इनका भरण?
बेरोजगारी की जलन।

दुग्ध बिन बोतल पड़ी
है रुग्ण माँ भूतल खड़ी,
इन परिजनों के दर्द का
कैसे करूँ बढ़कर हरण?
बेरोजगारी की जलन।

कदमों में छाले पड़ गये
जेवर भी गिरवी धर गये,
फैलते उर – ज्वार का
कैसे करूँ डटकर शमन?
बेरोजगारी की जलन।

है तजुर्बा माँगता जग
रुक गया सहसा बढ़ा पग,
पर बिना ही काम के
कैसे करूँ अनुभव वरण?
बेरोजगारी की जलन।

शत ख्वाब थे हमने गढ़े
मदमस्त हो जो पग बढ़े, उन चाहतों की भीड़ में
होता रहा मन का दहन।
बेरोजगारी की जलन।

जल गये अरमान सारे
हर्ष के सामान सारे,
पर सुलगते स्वप्न कुछ
बन शूल चुभते हैं बदन।
बेरोजगारी की जलन।

अनिल मिश्र प्रहरी।

प्रार्थना।

October 14, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

त्रिविध ताप कर शमित हमारे भोले शंकर।

राह कठिन, मंजिल भी धूमिल,
पैरों में छाले, उजड़ा दिल।
आज हमें दर्शन दे देखूँ तुझको जी भर।
त्रिविध ताप कर शमित हमारे भोले शंकर।
फैल रहा प्रतिपल अँधियारा,
हर पल ठोकर, चल-चल हारा।
आकर हमें बचा ले वरना जाऊँगा मर।
त्रिविध ताप कर शमित हमारे भोले शंकर।
वैर, भेद, आतंक, निराशा,
नर, नर के शोणित का प्यासा।
अपनों ने अपनों का देखो फूँक दिया घर।
त्रिविध ताप कर शमित हमारे भोले शंकर।
मूल्य – ह्रास, आचार – हीनता
भ्रमित बुद्धि, भय और दीनता।
जन-जन का कल्याण करो, पीड़ा सबकी हर।
त्रिविध ताप कर शमित हमारे भोले शंकर।
सीमा पर दुश्मन के गोले,
दे त्रिशूल अब अपना भोले।
सर्वनाश कर दे बाबा दुश्मन को धर-धर।
त्रिविध ताप कर शमित हमारे भोले शंकर।

अनिल मिश्र प्रहरी।

New Report

Close