बेरोजगारी की जलन।
बेरोजगारी की जलन।
नभ पर घटा घनघोर है
तम भी बिछा हर ओर है,
इन झुरमुटों को चीरकर
आता न अब शीतल पवन।
बेरोजगारी की जलन।
शत-शत किताबें क्रय किया
ले ऋण भी अगणित व्यय किया,
अब जीविका की चाह में
कब तक सहूँ पथ पर अगन?
बेरोजगारी की जलन।
घर की जरूरत बढ़ रही
तनुजा शहर में पढ़ रही,
माँ-बाप, बीबी, सब खड़े
कैसे करूँ इनका भरण?
बेरोजगारी की जलन।
दुग्ध बिन बोतल पड़ी
है रुग्ण माँ भूतल खड़ी,
इन परिजनों के दर्द का
कैसे करूँ बढ़कर हरण?
बेरोजगारी की जलन।
कदमों में छाले पड़ गये
जेवर भी गिरवी धर गये,
फैलते उर – ज्वार का
कैसे करूँ डटकर शमन?
बेरोजगारी की जलन।
है तजुर्बा माँगता जग
रुक गया सहसा बढ़ा पग,
पर बिना ही काम के
कैसे करूँ अनुभव वरण?
बेरोजगारी की जलन।
शत ख्वाब थे हमने गढ़े
मदमस्त हो जो पग बढ़े, उन चाहतों की भीड़ में
होता रहा मन का दहन।
बेरोजगारी की जलन।
जल गये अरमान सारे
हर्ष के सामान सारे,
पर सुलगते स्वप्न कुछ
बन शूल चुभते हैं बदन।
बेरोजगारी की जलन।
अनिल मिश्र प्रहरी।
Nice
धन्यवाद।
Ok
THANKS
बहुत सुन्दर रचना
THANKS
Kya khub
THANKS
Good
THANKS
वाह बहुत सुंदर
THANKS
वाह वाह क्या बात है बहुत खूब