दिल

February 3, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

देख कर खामोश है, शहर मेरा.
इतनी भी क्यां गिला तेरा.
जब छोड़ कर आये मंजिल तेरी.
सब चाह रहे दिल जवां मेरा.
बड़े नाजुकाना संबंध मेरे मौकिल के.
ऐसे ही नही दिल लगाना तेरा.
लिख आये पत्थरों पर नाम साजन.
ऐसे कहाँ होता साकी प्यार जताना तेरा.
तेरी खूबियां अवध क्या जाने दिल जलाना तेरा.

अवधेश कुमार राय “अवध”

ख़त

February 3, 2018 in शेर-ओ-शायरी

मैंने सारे जवाब जो तुझे ख़त किये है.
दिल के फरमान काग़ज़ी किये है.
बहोत उदास तेरी चाहतो का शोहबर इन दिनो.
हमनें अपनी फरमाईश जो कियें है।
शौहदा अवध लिखे भी कैसे शहर बदनाम किये है।

अवधेश कुमार राय “अवध”?

दर्द

February 3, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

मुखौटे सजाये फिर रहे हो आजकल.
दिल में जख्म़ लिये जिये जा रहे हो.
हर किसी ने ओढ़ रक्खा मतलबी नकाब.
एक दुशरे को दर्द दिये जा रहे है।
न मंसूबा मेरी जवां हसरतें मुल्तवी हो रही.
मेरी ख्वाहिशे मुखौटा बन गई है।
हसता हूंँ, सिर्फ हसाने को आपकों.
भला कौन हँसे मुखौटे लिऐ.
हम नकाब लिए जिये जा रहे.

अवधेश कुमार राय “अवध”

फिजा

May 14, 2017 in शेर-ओ-शायरी

कुछ लिखूंगा तो तुम बुरा मानगो.
हमारी मोहब्बत पर रार ठानगो.
अब यही रहा अंजाम -ए- इश्क मेरा.
मेरी जज्बातो को जब्त कर हुश्न का इकबाल कर.
यह मोहब्बत नहीं आसान इसका सम्मान कर.

#अवध?

अश्क

May 14, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ बेरुखी रही आज कल घर मेरे.
ना दिल रहा अकतियार मेरे.
डबाडबाई आँखो से उतर आई अश्क कपोलो पर.
कितनी बेरुखी रही मोहब्बत हमारे खित्ते है्.

#अवध?

तन्हाई

May 11, 2017 in शेर-ओ-शायरी

बहुत मायूश रही मेरी मेहरबा मुझसे.
ना कोई चाहत की रखी कोई सिल्सिला हमसे.
कोई बताये कोई खबर मेरी चाहत की चांद की.
अब तक घिरी में घर में अमावश की रात ही.

अवधेश कुमार राय “अवध”™

ख्वाहिश

May 11, 2017 in शेर-ओ-शायरी

बड़े मौजू हो चूकी ख्वाहिश की पेशकश मेरी.
इरादे नफीश की खमबखम मेरी.
जरा सून क्यो इल्तिजा का मायूस आरजू.
मैं तेरी नहीं मोहब्बत की ख्वाहिश.

अवधेश कुमार राय “अवध*

अवध

अब ना गाऊंगा

May 9, 2017 in गीत

अब ना गाऊंगा गित तेरे यादो की.

अब ना चाहुंगा प्रित तेरे सांसो की.

कुछ थमा तुम्हारे हमारे बिच यादो का गुलिस्ता.

जो हमसफर रुठ चुका हमारे घर से.

जो चूक चुका महफिल की रंजोगम से.

फिर गित ना गा पाऊंगा.

महबूब तुझे गुनगुना ना पाऊंगा.

  1. अवधेश कुमार राय “अवध”


एतराज

May 9, 2017 in शेर-ओ-शायरी

बहुत सुकून हो मोहब्बत तुमको एतराज हो हमसे.

इस फिजा की तफतिश में एक बार हो हम से .

कोई रेहबर हुआ था मेरा जिसे हमसे इल्तिजा थी इतनी.

मोहब्बत में अश्को से रुठा जाना हुआ हैं .

दोहमत लगती मोहब्बत छोड़ आये.

हम तो जींदगी का सुकून छोड़ आये.

अवधेश कुमार राय “अवध”

 

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