“कामयाबी की ईमारत”

September 1, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज भी वो दिन याद आते है उसे भुलाऊ कैसे
ये कामयाबी की ईमारत छोड जाऊ कैसे…

बचपन में कलम थमाई थी आपने, आज वो कलम झुमती है एसे
ये कामयाबी की ईमारत छोड जाऊ कैसे…

गली में देख आपको, डरता था मैं भी, ये मीठा डर लाऊ कैसे
ये कामयाबी की ईमारत छोड जाऊ कैसे…

दुनिया के सामने जीना सिखाया, ये तरिका अब आझमाऊ एसे
ये कामयाबी की ईमारत छोड जाऊ कैसे…

पाठशाला से लेकर आज तक की दूरी, समजा ना पाऊ ये सफर एसे
ये कामयाबी की ईमारत छोड जाऊ कैसे…

दुआ से आपकी ख्वाब भी पीछे छुटा, पता नही था मंजिल मीलेगी एसे
ये कामयाबी की ईमारत छोड जाऊ कैसे…

जिंदगी भर चुका न पाऊ इस ईमारत की किंमत, आपकी याद रहेगी बेशक एसे
ये कामयाबी की ईमारत छोड जाऊ कैसे…
ये कामयाबी की ईमारत छोड जाऊ कैसे… Happy Teacher’s Day…