
Nishit Lodha

एक राह अक्सर चलोगे
July 29, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता
एक राह अक्सर चलोगे
मिले न मिले तुम याद अक्सर करोगे,
हम गुमसुम बैठे अगर तुम बात अक्सर करोगे ,
नुमाइश होगी कुछ अगर पूछ लेना हमसे ,
हमारी याद आये तो तुम बात अक्सर करोगे,
ज़िन्दगी की पहल भी अजीब है,
जीने की राह मिल जाये तो तुम साथ अक्सर चलोगे,
तुम्हे नहीं पता नाम हमारा ,
तुम बिन नाम के भी याद अक्सर करोगे ,
कभी भूल जाऊ रास्तें या चहेरे कही,
तुम यादों में आकर साथ अक्सर चलोगे,
मुझे नहीं पता ये मौत कब गले लगा ले,
तुम ढूंढ लेना मुझे ,लगेगा की जीने को साथ अक्सर चलोगे.
निशित लोढ़ा

माफ़ करना
July 29, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता
माफ़ करना
कुछ कहे कभी दिल दुखाया तो माफ़ करना ,
दर्द दिल को कभी पहुंचाया तो माफ़ करना ,
हसरत तो नहीं हमारी , देने को कोई गम की ,
पर आँखों को कभी रुलाया तो माफ़ करना ,
बोल जाते है कुछ शब्द आग़ोश में ,
उन् शब्दों को दिल से लगाया तो माफ़ करना ,
अरमान बहुत है रब तुझसे ,इबादत करना ,
उस वक़्त में गुस्ताख़ ऐ दिल आज़माया तो माफ़ करना ,
मुमकिन नहीं मिलना हर चाह ज़िन्दगी की,
पर कोशिश ही न करू में, तो खुदा तू माफ़ करना ,
नूर बसा है इन आंखों में उनके नाम का ,
उन्हें भुला न पाऊं ऐ ज़िन्दगी तो माफ़ करना,
यादों में रहोगे तुम ये बात याद रखना,
कभी मिल न पाऊ में फिर अगर तो खुदगर्ज़ ही सही माफ़ करना।
निशित लोढ़ा
मेरे पापा (हर पिता को समर्पित)
June 19, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
मेरे पापा (हर पिता को समर्पित)
आज फिर ऊँगली पकड़ मुझे एक राह चलना सीखा दो पापा ,
कुछ यादें फिर साथ अपने रहे, कुछ बातें ऐसी बना दो पापा ,
देख युही आँखो में मेरे ,पकड़ मुझे हस् के गले से लगा दो पापा ,
आज फिर मुझे हाथ पकड़ एक राह संघ चला दो पापा,
याद है मुझको आपका कंधे पे बिठा कर हर जगह घुमाना पापा ,
हातों में ले मुझे ,हातों में ही सुलाना पापा,
हर सुबह माथे पे चुम मुझे गोदी में उठाना पापा ,
अपने हातों से ही ज़िन्दगी भर खाना आप खिलाना पापा,
याद है मुझे आपका मेरे आंसू पोछ ,हसाना पापा ,
ख्वाइश मेरी सारी पूरी कर,ख्वाब अपने भुलाना पापा ,
मेरे हर सपने पूरे हो ,उन् सपनों को अपना बनाना पापा,
मेरी एक हस्सी देखकर ,आपका अपना गम भुलाना पापा ,
खुशनसीब में हु जहां कि आप मुझे मिले हो पापा ,
पर वही मेरे जन्म पर खुश आपको हर-दम पाना पापा ,
घर में मुझे जहां सब प्यार है दिखाते हर वक़्त-हर पल पापा ,
वही बिन दिखाए न कुछ बताये आपका वो प्यार जताना पापा ,
एक दिन जब आप मुझसे दूर गए ,लगा जैसे कि कही आप भूल गए पापा ,
महसूस किया जब आप बिना ,तो लगा दिल में कही अधूरापन है पापा,
फिर उस धुंद से दौड़ आपका मेरी ओर चले आना पापा,
देख आपको मेरी मुस्कान फिर चहेरे पे लौट आना पापा ,
फिर आपका गले मुझको लगाना पापा ,
और ऊँगली पकड़ मुझे फिर एक राह चलना सीखाना पापा,
आपका फिर मुझमे ज़िन्दगी भर बस जाना पापा ,
आप मुझमे अब हरदम-हरवक्त समाना पापा।
कवि निशित योगेन्द्र लोढ़ा
न जाने वो कौन थे
June 15, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
न जाने वो कौन थे ,
मोहबत का तवजु दे गए मुझे ,
न जाने वो हमदर्द कौन थे,
लिखी न कभी दास्ताँ दिल की ,
दिल जला वो दे गए ,
जाने वो खुदगर्ज़ कौन थे,
रास्ता ढूंढता मुसाफिर बन जहां ,
वो राही बन बेसहारा कर गए,
जाने वो सरफिरे कौन थे ,
में चला जहां जो अपनी चाल कही ,
वे काफिला बन साथ चल गए ,
जाने वो हमदम कौन थे,
अब कही अपनी राह पा चूका,
मिले जो वो जन मौन है ,
सोचु में बस यही , न जाने वो कौन थे।
कवि निशित लोढ़ा
दिल से दिल की बातें
June 15, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
दिल से दिल की बातें
वक़्त निकालने के लिए कभी साथ ज़रूरी लगता था ,
आज अकेले यादों के सहारे भी जी लेता है ,
अब न तुम याद आते हो ,न तुम्हारी याद आती है,
ये बहती हवा दिल के पन्ने पलट कर न जाने कहा चली जाती है ,
मांगू जहां छाया तेरे जुल्फो कि उस तपती दुपहरी में,
चहेरा वही मेरा न जाने क्यों यु जला चली जाती है ,
खुद कि वफ़ा ऐ दिल अब क्या में साबित करू ,
मेरे दिल की धड़कन मुझे बेवफा कहे जाती है ,
मुलाकात तो आज भी होती है इन् राहों पर,
में नज़रे झुकता, तो वो मुस्कुरा देती है ,
अब लगता है कोई ख्वाइश उनकी बाकि रही होगी ,
वर्ना जब में पलट कर देखता ,
तो वो लबो पे क्यों मुस्कान ले छुपाती है।
कवि निशित लोढ़ा
में हु थोड़ा उनमे थोड़े मुझमें
March 24, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
में हु थोड़ा उनमे थोड़े मुझमें
छूटे न छूटे ऐसा रिश्ता बन जाये उनसे ,
आपकी बहुत याद है आती
March 19, 2016 in Other
आपकी बहुत याद है आती
आपकी बहुत याद आती है ,
साथ आपका ,बातें आपकी,मुस्कान हो या चाहत आपकी,
सब दिल में है, कुछ कहती और चली जाती ,
शायद इसे आपकी बहुत याद है आती,
बोले अलफाज़ और बीतें हर साज़ मेरा पास है जैसे साथी ,
न जाने क्यों हर दम-हर वक़्त मुझसे बहुत कुछ ये बातें कहे जाती,
मन में है सवाल कही ,उसके जवाब ढूंढे कहा ऐ जनाब बन साथी,
कहु खुदसे बस यही कि दिल में आपकी बहुत याद है आती,
ढूंढा कहा नही आपको मैंने ,पाया खुद में ही ऐ साथी ,
जैसे जलती मेरे-आपके बीच कोई दीपक बन बाती ,
आस्मां में अँधेरा कहा तारों का है सहारा देख पंथी ,
आँखो में है राहें कही ,पर ढूंढो में रास्तें अनकहे पहुंचे आप तक ऐ हमराही,
देख ले खुद में मुझको कही ,
में तो कहता हु खुद से बस यही, की बस आपकी बहुत याद है आती,
आपकी बहुत याद है आती।
निशित लोढ़ा
KAVISHAYARI.BLOGSPOT.IN

वो समुन्दर भी बहुत रोता है
March 13, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
वो समुन्दर भी बहुत रोता है
समझ गया एक दिन समुन्दर,तू भी कितना रोता है,
खारा है तू खुद में कितना ,
शायद इंसान से ज्यादा तू दिल ही दिल रोता है,
पाया क्या तूने जो खोया होगा,
की तू खुद में इतना खोता है,
समझ गया एक दिन की समुन्दर तू भी बहुत रोता है,
मन में न दर्द रखता दिल में न द्वेश ,
क्यों हर मायूस-हारा इंसान तेरे पास किनारे होता है,
अकेला महसूस किया जब किसी ने,
तो मिटटी या पत्थर पर सोता है,
लेकिन समुन्दर वो अकेला कहा, वो तो तेरे पास होता है ,
जब किनारे ले मेहबूब कोई अपनी होता है,
हाथ में हाथ लिए साथ, कही कोई सपने जोता है,
ऐ समुन्दर तू भी देख उन्हें बहुत कही रोता है,
दिल पे न लेना कोई अपने ,बिन बोले भी कोई रोता है,
देख कभी समुन्दर की लेहरे समझ लेना ,की समुन्दर भी बहुत रोता है,
वो समुन्दर भी बहुत रोता है ।
NISHIT LODHA
kavishayari.blogspot.in

बेवफा दिल
March 13, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
बेवफा दिल
बेवफा ज़िन्दगी में किसी अजनबी से प्यार हो गया ,
मोहबत हुई उनसे इस कदर की ऐतबार हो गया ,
सुना था दुनिया में अक्सर की ये प्यार क्या है ,
किया जब दिल ने, मुझसे पूछो की ये बला क्या है,
मिले जब दिल कही उनसे तब लगा सदियों के फासले है ,
दिल के दिल से जुड़े कही तो कुछ फैसले है,
चाहा था क्या दिल ने और मिला क्या,
शायद उनके मेरे बीच यही सिलसिले है ,
यकीन था इस दिल में की हम इस जहान में मिलेंगे ,
मिला कुछ तो सही तो हम एक राह संग चलेंगे ,
जो चाहा इस दिल ने वो फिर कहा मिला ,
बेवफा ही था यह दिल जो फिर गला ,
इस ज़िन्दगी में फिर दर्द के सेवा कहा कुछ मिला ,
बस फिर चला था ये दिल ढूंढा फिर भी कहा कोई उनसा मिला ,
अधूरा था रहे गया , शायद यही था उनके और मेरा प्यार में।
निशित लोढ़ा
वो माँ है
March 7, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
वो माँ है
आँखों में छुपी हमारी हर ख़ुशी ,
हर मुस्कराहट का राज़ है तो वो माँ है,
गम हो की दुख़,दर्द ही क्यों न हो दिल मे ,
उस दर्द में छुपे हर सवाल का जवाब है तो वो माँ है,
दुखाये दिल जब ये दुनिया कही हर मुकाम पे,
संभाल मुझे समझाने वाली वो है तो वो अपनी माँ है,
आंसू आए जहाँ चहेरे पर जब कभी ,
हाथ आँचल संभाले आये वो साथ मेरी माँ है,
ये मुस्कान, ये हँसी, चहेरे पे जो हरदम दिखे,दुनिया की तब्दील मुश्किलों के बावजूद उस मुस्कराहट का राज़ है तो वो माँ है,
माँ शब्द है समुन्दर से गहरा ,
ममता का वो सागर है,जिसके बिना शायद ये कायनात अधूरा है,
कैसे लिख दे कोई कवी बन अपनी माँ की ममता की कहानी,
शायद इसलिए हर माँ की कविता का प्रेम लिखता कोई हम कवी तो सच कहता हु की लिखा हर शब्द अपनी माँ के लिए अधूरा है।
मेरी ये कविता हर माँ को समर्पित,?
अपनी माँ कविता लोढ़ा के जन्मदिन पर।
कवि-निशित लोढ़ा

आंसू तेरी भी रही होगी कोई कहानी कही
March 3, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
आंसू तेरी भी रही होगी कोई कहानी कही
सोचता हु कभी-कभी में, की ऐ आंसू ,
तेरी भी तो रही होगी कोई कहानी कही ,
दुःख में सुख में आ जाता है तू हर घड़ी ,
फिर जर्रूर तेरी भी रही होगी कोई कहानी सही ,
ये मन उदास हुआ जब कभी ,
तो क्यों आ जाता है मुख पे तू आंसू वही,
शायद तेरी भी रही होगी अधूरी कहानी कही ,
लगता है मुझे कभी-कभी ,
की तुझे छोड़ न गया हो अकेला इस जहान में कोई कही,
तभी तो रह गयी होगी तेरी वो कहानी अधूरी वही ,
फिर सोचता है ये मन जब कभी ,
कि ख़ुशी के पल में भी आँखो से है झलकता है तू हर कही,
शायद ज़िन्दगी में मुस्कान तेरे रही होगी हर सदी ,
फिर क्यों रही होगी वो कहानी अधूरी तेरी भी कही ,
आशा की ज़िन्दगी जीता है तू अनकही ,
आंसू तू गम-ख़ुशी के हर घूट पीता है जब कभी ,
तभी तो तेरी भी रही होगी कोई कहानी सही,
अलाह,भगवन,ईसा मसीहा को याद किया भी होगा तूने जब कभी ,
देखा तुझे हर चहेरे पे मैंने अंतर मन से वही,
बस सोचा इस दिल में यही,
की आंसू तेरी भी रही होगी कोई कहानी सही,
शायद होगी तेरी भी कोई कहानी कही.
निशित लोढ़ा
मंज़िल
February 29, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
मंज़िल
मुस्कुराते हुए तुम चलते चलो,
गुनगुनाते तुम बढ़ते चलो,
मंज़िल तुम्हारा इंतज़ार कर रही है हर मोड़ पर,
तुम बस कदम संभाले चलते चलो,
रास्ता मुश्किल जितना होगा, उतना सुन्दर परिणाम मिलेगा,
ये बात जाने तुम बढ़ते चलो।
बहुत मिलेँगे मंज़िल ऐ मुसाफिर तुम्हे ,
तुम बस देख उन्हें अपने कदम बढ़ाते चलो ,
सुन्ना है रास्ते भी इंतज़ार करते है,
बंजारों का, बस तुम खिल-खिलाते हुए हाथ बढ़ाते चलते चलो।

ढूंढ़ता बचपन
February 29, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
ढूंढ़ता बचपन
?
बस ऐ,ज़िन्दगी मुझे मेरा बचपन लौटा दे।
Nishit Lodha
मुझे मेरा वो हस्ता हुआ कल लौटा दे,
आंसू दे मुझको, पर उन्हें पोछने वाला वो आँचल लौट दे।
ढूंढता हु में आज कल वो दिन अपने,
खेलता खुदता वो आँगन लौटा दे।
बिठा दे मुझको उन कंधो पे और उस आसमान की एक वो ही लंबी सेर करा दे।
भुला दे हर दर्द ज़िन्दगी के और खेल- मस्ती की वो चोट लगा दे।
ढूंढता हु में अपना बचपन आजकल हर रास्ते पे बंजारा बन।
बस माँगता हु ज़िन्दगी से, की ऐ ज़िन्दगी मुझे मेरा वो कल लौट दे और
वो खिलखिलाता हुआ बचपन लौट दे।
?
मुझमे में हु कही…
February 28, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
मुझमे में हु कही…
आईना में अक्सर देखा खुद को जब मैंने कही ,
चहेरे पे चहेरा हर दम दीखता है ,
वो मासूमियत सा खिलखिलाता बचपन,
देखू कहा,अब तू बता, ऐ मन,ढूंढ़ता हरदम दीखता है ,
मंज़िल ऐ सफर ,न कोई फ़िक्र ,
वो पल-वो कल ,
वो साथ अपनों का, ढुंढू तो भी अब कहा मिलता है,
वक़्त की कीमत का उस समय एहसास न था,
आज कोडी-कोडी कमाने के लिए कोई मुझमे हर दम मिलता है,
चहेरे पे ढुंढू कहा वो हस्सी अपने बचपन की ,
अब तो मुस्कुराने में भी मन को सूनापन लगता है ,
जीना को ज़िन्दगी तो बहुत लम्बी दी, ऐ खुदा ,
पर सबसे बेहतर जीने में बचपन लगता है।
one of my best creations
dedicated,
Nishit Yogendra Lodha
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वो यादें
February 27, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
वो यादें
उनसे बिछड़े मुझे एक ज़माना बीत गया,
याद में उनके रहते एक अफ़साना बीत गया,
किताबो के पन्नें पलट गए हज़ार ज़िन्दगी के ,
पर साथ छूटे उनका मेरा ऐसा जैसे संसार मेरा वीराना बीत गया,
लिखी कहानी जो उन् हज़ार पन्नो पे वो शायद जमाना बीत गया,
पिके बेहटा हु अपने आप में कही .
याद में उनके रहता आज भी वो अफ़साना बीत गया ,
शायद ज़िन्दगी का एक पल और जैसा उनका दीवाना सा बीत गया।
निशित लोढ़ा
ये नज़ारे
February 27, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
ये नज़ारे
आसमान को ताकता ढूंढता में वो एक तारा,
न जाने कहा छुप बेहटा बादलो के बीच कही तो मुस्कुरा रहा है,
वो पंछी हर राह मुड़ता कही अपना रास्ता बना हवाओ के बीच चलता अपने घर उड़ता चला जा रहा है,
देखती नज़रे जहा दूर कही चलती दुनिया को,
अपनी मंज़िल की और बढ़ता जैसे कोई उन्हें जल्द अपने पास बुला रहा है,
बेहटा में कही गुनगुनाता देखता उन् नज़ारो को हलके हलके यादों के संग एक बात दिल में कही छुपाये ,
हाय मुस्कुरा रहा है,
देखो शायद मुस्कुरा रहा है।?
कवि एव पत्रकार-
निशित लोढ़ा?