तुम्हारे बिन!

March 24, 2022 in ग़ज़ल

तुम्हारे बिन मेरा जीवन बड़ा बेरंग है,
तुम्हारे संग ही जीवन के सारे रंग है,

ना इक भी कॉल, मैसेज और ना बातें,
बताओ इस तरह से कौन करता तंग है,

हमारी पहली होली और तुम बिन,
ना हर्षोल्लास मन में, ना कोई उमंग है,

ग़ज़ल और गीत लिखने पड़ रहे हैं,
मनाने का मुझे बस यही मालूम ढंग है,

चलो! अब मान जाओ, मुस्कुराओ,
कि मिलकर खेलते होली लगाते रंग है,

~© शिवांकित तिवारी “शिवा

ख़ुद को मैं बेकार समझता हूँ,

March 24, 2022 in ग़ज़ल

मैं ख़ुद को बेकार समझता हूँ,
हूँ नहीं, मगर यार समझता हूँ,

आपकी भी कहानी से वाक़िफ हूँ,
आपका भी किरदार समझता हूँ,

आप मुझे बेवकूफ़ समझते हैं,
आपको मैं समझदार समझता हूँ,

आपको मैं बिल्कुल पसंद नहीं हूँ,
कहिये मत, इनकार समझता हूँ,

आपको आपकी जीत मुबारक हो,
अपनी जीत को मैं, हार समझता हूँ,

तुम्हें जब से हासिल हूं आसानी से ,
आसानी को अब दुश्वार समझता हूँ,

~© शिवांकित तिवारी “शिवा”

जीवन का सच

March 24, 2022 in ग़ज़ल

मुश्किल है आसान नहीं है,
जीना आसाँ काम नहीं है,

जिसको अच्छा समझ रहे थे,
वो अच्छा इंसान नहीं है,

जो वाकई ज्ञानी होता है,
सबको देता ज्ञान नहीं है,

मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे है,
सबका इक भगवान नहीं है,

बिना प्रेम के जीवन बिल्कुल,
ज्यों मुर्दे में जान नहीं है,

सुख में साथ सभी होते है,
दुःख में देते ध्यान नहीं है,

जीवन जीना मुश्किल है पर,
मरना भी आसान नहीं है,

~© शिवांकित तिवारी “शिवा”

“वो गाँव वाला यार”

January 22, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज दिल बेचैन है और बड़ा बेकरार है,
बहुत याद आ रहा वो गाँव वाला यार है,

बार-बार नजर आज उसका चेहरा आ रहा है,
जैसे मुझे वो भी चीख-चीख के बुला रहा है,

है गुजारा उसके साथ मैने सारा बचपन,
साथ मौज-मस्तियां,शैतानियां करते थे हम,

सबसे अलग,सबसे जुदा बहुत शानदार है,
शांत,सरल,सहज मेरा गाँव वाला यार है,

बचपन बिताया अपना सारा उसके साथ गाँव में,
लड़ते-झगड़ते,खेलते थे बरगद के नीचे छांव में,

गर कभी भी रूठूं उससे तो मनाने आता था,
गर कभी उदास बैठूं तो हंसा के जाता था,

बड़े हुये दब गये है जिम्मेदारियों तले,
यार छूटा,गाँव छूटा हम शहर निकल चले,

सपनों का अपने गला घोंट किया उसने मेरी खातिर बलिदान है,
मुझे तो शहर भेज दिया वो आज गाँव का किसान हैं,

बहुत सच्चा,बहुत अच्छा और बहुत ही महान है,
गाँव चुना,करके कुर्बान ख्वाब,बना वो किसान है,

आखिर उसका सपना मैंने पूरा किया,
किया था जो उससे वादा उसको निभा दिया,

अब इस शहर को छोड़ गाँव जाने को तैयार है,
क्योंकि याद बहुत आ रहा वो गाँव वाला यार है,

गर दोस्त न हो जिंदगी में तो जिंदगी बेकार है,
दोस्तों से ये जिंदगी हैं और उनसे ही ये संसार है,

-शिवांकित तिवारी “शिवा”
युवा कवि एवं लेखक
सतना (म.प्र.)

“दहेजप्रथा मुक्त समाज”

January 13, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

बेटी है यह कोई सामान नहीं,
यह अनमोल खजाना है,
जिसका कोई दाम नहीं,

बड़े लाड़ प्यार से पाला था जिसको,
हर बुरी नजर से बचा कर संभाला था जिसको,
आज उस जिगर के टुकड़े को खुद से जुदा करते हैं,
पहले बेटी का सौदा करते हैं,फिर बेटी को विदा करते हैं,

बचपन से उसकी हर एक जिद को पूरा किया,
सारी खुशियाँ अरमानों को उसके तवज्जों दिया,
अब उसे करके पराया घर से अलविदा करते हैं,
पहले बेटी का सौदा करते हैं,फिर बेटी को विदा करते हैं,

रक्खा था अभी तक उसको अच्छे से सहेज,
आखिर अब बेच दिया उसको देकर दहेज,
क्यूँ चंद पैसों से उसका सौदा सरेआम करते हैं,
पहले बेटी का सौदा करते हैं,फिर बेटी को विदा करते हैं,

चंद पैसों के खातिर जला देते है बेटी के अरमान,
न बेंचो खरीदों बेटी को यह नहीं हैं कोई सामान,
बन्द करों दहेज लेना और देना,
न लगाओं अब इसका कोई भी दाम,
इस दहेजप्रथा को जड़ से मिटाने की अब सभी सपथ करते हैं,
पहले बेटी का सौदा करते हैं,फिर बेटी को विदा करते हैं,

अब दहेज प्रथा हटाकर,दहेज मुक्त समाज बनाना हैं,
इस कुरीति को मिटाकर बेटियों को बचाना हैं,

-शिवांकित तिवारी “शिवा”
युवा कवि,लेखक एवं प्रेरक
सतना (म.प्र.)

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