कवि सचिन मिश्रा साधारण
शारदे वंदना
May 14, 2016 in Other
मां वीणा वादिनी का नमन करते हुए इस नये सफर की शुरुआत करता हूं
मा शारदे मेरी मा शारदे
सद्विचारो भरा हमको संसार दे
मा शारदे मेरी मा शारदे।
अपनी ममता की बारिश की बौछार दे
मा शारदे मेरी मा शारदे
तेरी आराधना मा मै कैसे करूं
हाथ मे है कलम शब्द मिलते नही
मूढ अज्ञानी मै कैसे वन्दन करूं
सामने तू खड़ी स्वर निकलते नही
कर रहे आरती हम खड़े द्वार पे
करके स्वीकार वन्दन हमे तार दे
मा शारदे मेरी मा शारदे
सद्विचारो भरा हमको संसार दे
मा शारदे मेरी मा शारदे।
अंधकारो भरा मेरा जीवन सुनो
एक तुम्हारे सहारे चले आऐ है
राह भटका हूं मै पथ दिखाओ मुझे
जग से हारे बेचारे चले आऐ
दिन का भूला हुआ लौटा है शाम को
अब गले लगा के मा उपकार दे
मा शारदे मेरी मा शारदे
सद्विचारो भरा हमको संसार दे
मा शारदे मेरी मा शारदे।
सच ही निकले मेरी लेखनी सदा
सच का साथी बनू ऐसा वरदान दो
झूठ से मै बचू छल कभी ना करूं
अपने चरणों माँ मुझको स्थान दो
मै अंधेरों से डरता रहा उम्र भर
मेरे जीवन को उज्ज्वल करो शारदे
मा शारदे मेरी मां शारदे
सद्विचारो भरा हमको संसार दे
मा शारदे मेरी मा शारदे।
सचिन मिश्रा साधारण
7786957386
सूखी स्याही
May 14, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
~सूखी स्याही~
केवल शब्दों का
झुण्ड है,
मेरी कविताऐं
लोगों के लिए,
सचिन*
पर जब हम
बैठते है पढ़ने
को ,
तो
यादों में
बदल जाती है,
हर बार
वही लम्हें,
नजरों के
सामने आ,
गलतियाँ मेरी,
मुझको ही
बता जाते है,
सोचा कि मैं
भी रो लू,
थोड़ा सा गम
करूं कम,
मेरे सूखे आँशू
सदा,
छुप-छुप के
निकल जाते,
याद आता
है जब,
खुद का
अतीत मुझको,
मेरे गम बन
जाते कविता,
सूखे आँशू
स्याही में
बदल जाते!
~सचिन~