Sulabh Jaiswal
खामोश जुबां से इक ग़ज़ल
June 18, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता
रौनक-ए-गुलशन की ख़ातिर अज़ल लिख रहा हूँ
ख्वाईश इन्किलाब की है मुसलसल लिख रहा हूँ।
सब कुछ लूट चुका था बस्तियां वीराँ थी
बेमतलब हुआ क्यूँ फिर दखल लिख रहा हूँ।
आवाजों के भीड़ में मेरी आवाज़ गुम है
अल्फाजों को मैं अपने बदल लिख रहा हूँ।
बेबस आँखों में शोले से उफनते हैं
अंधेरे में हो रही हलचल लिख रहा हूँ।
उम्मीद इस दिल को फिर से तेरा दीदार हो
ख्यालों में तेरे खोया हरपल लिख रहा हूँ।
बेहद खौफ़नाक मंज़र है और क्या बयां करूँ
खामोश जुबां से इक ग़ज़ल लिख रहा हूँ।
अज़ल = beginning
मुसलसल = बार-बार, निरंतर
देश बेहाल है
June 18, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता
हर विभाग आज सुस्त और बेहाल है
काम कुछ नही सिर्फ़ हड़ताल है ।
भ्रष्ट्राचार का तिलक सबके भाल है
भेड़िये ओढे भेड़ की खाल है।
उपरवाले तो तर मालामाल है
हमारे खाते में आश्वासनों का जाल है।
घोटालो से त्रस्त देश कंगाल है
नेता बजा रहें सिर्फ़ गाल है।
लोकतंत्र की बिगड़ी ऐसी चाल है
ईमानदार मेहनती जनता फटेहाल है।
चोर पुलिस नेता की तिकरी कमाल है
राजनीति जैसे लुटेरों का मायाजाल है।
अखबारों के पतंग बना
June 17, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता
बचपन में हम उन दिनों
बहुत ज्यादा शरमाते थे.
कविता के दो लाइन भी
खुलकर नही बोल पाते थे.
दूरदर्शन के आगे बैठ
जंगल- जिंगल गाते थे.
पापा घर में आ जाये तब
डर से उनके घबराते थे.
स्कूल में हम परीक्षाओं में
अंक बहुत अच्छे पाते थे.
लालटेन की मंद रौशनी में
पढ़ते-पढ़ते सो जाते थे.
मुहल्ले के साथियों को
कहानियाँ खूब सुनाते थे.
एक रूपये का नोट छुपाकर
किताबों में, हम इतराते थे.
जाड़े की धूप में छत पे बैठ
हम आधे बाल्टी नहाते थे.
माँ से थप्पर खा कर ही
फिर दिन में सो पाते थे.
मेहमाँ जो घर में आये कोई
देख मिठाइयाँ ललचाते थे.
शीशी, गत्ते, कबाड़ बेच के
मलाई बर्फ हम खाते थे.
अखबारों के पतंग बना
जैसे तैसे उड़ाते थे.
दादाजी के पाँव दबा
चार आने हथियाते थे.
तेरी याद लिए आती हैं।
June 17, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता
रात आती है तेरी याद लिए आती है
यादों की रंगीन बरात लिए आती है
यह मुश्किल है कि तेरी याद ना आये
कैसे भूलूं वो मुलाक़ात लिए आती है ।
यादों के भंवर मे किनारा नही मिलता
आसमा मे दुसरा सितारा नही मिलता
तनहा दिल है मेरा तेरे इंतज़ार मे
जीने का और सहारा नही मिलता।
कोशिश तुम्हारे पास आने की है
प्यार भरे दिल मे समाने की है
ये दूरियां कब ख़त्म होगी
एहसास जवा तुम्हे पाने की है।
और इंतज़ार बेक़रार किये जाती है
नींद भी मुझसे इनकार किये जाती है
आँखों मे सिर्फ तेरे ख्वाब लिए आती है
रात आती है और तेरी याद लिए आती है।