- प्रद्युम्न आर चौरे।
हाल ही में हमारे देश में 67वां गणतंत्र दिवस मनाया गया,26 जनवरी 1950 को हमे हमारे संविधान मिला,लोगों को नियम कायदे मिले,पुरे विश्व में भारतीय नागरिक होने की एक अलग पहचान मिली और हाँ आर्टिकल 19(1)ऐ मिला जी हाँ आर्टिकल 19(1)ऐ अर्थात अभिव्यक्ति का अधिकार जिसकी चर्चा आज पुरे देश में हो रही है।
कहते है न ताकत अकेले नहीं आती वो अपने साथ कुछ ज़िम्मेदारियों को भी लेकर आती है।
जिस दिन हम सभी देशवासियों को को मूलभूत अधिकार प्राप्त हुए उसी दिन हमे हमारे मूलभूत कर्त्तव्य भी दिए गए थे जिनका पालन आज हम से कितने कर रहे हैं पता नहीं।
अधिकारों की चमक दमक में हम इस कदर अंधे हो गए हैं के हमे अपने कर्तव्य नज़र ही नही आ रहे।
एक पत्रकारिता का छात्र और एक लेखक होने के नाते यदि मुझे किसी चीज़ से नफरत है तो ऐसे लोगों से जी पाकी पकाई रोटी खाना चाहते हैं,मेहनत नहीं करना चाहते।
ज़्यादा वक़्त नहीं हुआ है उस समय को जब सुबह के नाश्ते से लेकर रात के खाने तक कान में बस एक ही शब्द गूंजता था वो प्रचलित शब्द था “असहिष्णुता” या “असहनशीलता”।
उल्लेखनीय है के पिछले वर्ष दादरी उत्तर प्रदेश में एक व्यक्ति की हत्या सिर्फ इसलिए कर दी गई क्योंकि लोगो को संदेह था के उसने अपने घर में गौमॉस छुपा रखा है।
इस घटना ने 4-5 महीनो तक पुरे देश में हड़कंप मचा दिया इस चिंगारी को आग बनते देर नहीं लगी और धीरे धीरे ये आग पुरे देश को अपनी चपेट में लेने लगी।
बड़े बड़े साहित्यकारों ने अपने पुरूस्कार लोटा दिए,विपक्ष ने भी इस मुद्दे पर कई सारे राजनेतिक दांव खेले माहोल कुछ ऐसा ही हो गया था जैसा अभी हैदराबाद में एक दलित छात्र के आत्महत्या कर लेने के बाद हो गया है।
मुझे नफरत है तो ऐसे राजनीतिज्ञों से और ऐसी राजनीति से जिसके कारण देश में अस्थिरता फ़ैल जाती है।
कई सारे कलाकार,फिल्मकार आदि लोग भी इस मुद्दे पर बोलने से नहीं चुके,पहले शाहरुख़ खान फिर आमिर खान और अभी अभी करण जोहर। इतने वर्षों तक देश में रेह कर,लोगों के दिल में अपनी जगह बनाकर इतने लोकप्रिय होने के बाद ऐसे ऊल झुलुल बयान देना क्या सही है?
मुझे नफरत है ऐसे कलाकारों से जो सिर्फ सुर्खियां बटोरने के चक्कर में बिना कुछ सोचे समझे देश के खिलाफ बोल जाते हैं और बाद में ये कहकर मुकर जाते हैं की-“मेरा वो मतलब नहीं था”।
ऐसे लोगों को में हिदायत देना चाहूँगा के कभी भी लोगों के सामने सफाई पेश न करें,लोग तो वही सुनेंगे जो वो सुनना चाहते हैं।
मुझे नफरत है देश में चली आ रही रूढ़िवादी परम्पराओं से,गलत और छोटी मानसिकता से।
मुझे नफरत है जातिवाद से,परिवारवाद से,क्षेत्रवाद से क्योंकि में अपने देश को एक सूत्र में बंधे देखना चाहता हूँ,देश को आगे बढ़ते देखना चाहता हूँ,तिरंगे को शान से लहराते हुए देखना चाहता हूँ।
“ये देश ही तो है जो मुझे कुछ करने के ख्वाब दिखाता है,इस कदर वाखिफ है मेरी कलम मुझसे के में इश्क़ भी लिखना चहुँ तो इंकलाब लिखा जाता है।।”
अंत में बस इतना कहूँगा के जो भी व्यक्ति मेरे वतन मेरे मुल्क मेरे देश मेरे भारत के खिलाफ होगा और कर्तव्यों का पालन न कर के केवल अधिकारों की बात करेगा उसे कम से कम मुझसे तो नफरत ही प्राप्त होगी।
“हर बात पर बवाल हर बात पर बवाल
उत्तरों की खोज में सवाल पर सवाल
काश!अधिकारों के इन जानकारों ने
अपने कर्त्तव्य भी ज्ञात किये होते
आग न लगती देश में बस
रौशनी के दिए होते”
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