पतंग

न बाँधों मन पतंग को,उड़ जाने दो नवीन नभ की ओर
हंस सम भरने दो,अति उमंग मे नई एक उड़ान स्वतंत्र
भावों की डोर मे बंध निर्भय,करने दो अठखेलियाँ स्वच्छंद
न खींचो धरा की ओर,बाँध पुरानी रस्मों,नियमों की डोर
उड़ जाने दो मन पतंग को सुदूर कहीं नील गगन की ओर
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सतरंगी भूले मधुर सपनों के झिलमिल कागज से सजकर
कामनाओं की सुकोमल,मृणालिनी सी तीलियों से बंधकर
आनन्दमग्न भरने दो उड़ान नई,खुली हवा मे चहुँ ओर
डोर रिश्तों की बाँध,निष्ठुर खींचो न यूँ धरा की ओर
उड़ जाने दो मन पतंग को सुदूर कहीं नील गगन की ओर
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नाप लेने दो व्योम इसे यह नव नीलाभ सा अपरिचित
चख लेने दो प्यासे मन बावरे को उछाह मे आजादी का अमृत
करने दो किलोल,विस्मृत कर भू को ,हो लेने दोअब हर्षित
बाँध उम्र के बंधन,न काटो निर्ममता से कोमल मन की डोर
उड़ जाने दो मन पतंग को सुदूर कहीं नील गगन की ओर
bahut sundar
बहुत धन्यवाद
behatreen!
बहुत धन्यवाद
वाह बहुत सुंदर