Titleless
मेरे बाहर के यूनिवर्स को
और मेरे अंदर के यूनिवर्स को
मेरे अंतर्द्वंद को
और बहिर्द्वंद को
कविताएँ
तराज़ू की तरह
दोनों पलड़ों पर बिठाए रखती हैं
कभी यह पलड़ा भारी हो जाता है
तो कभी वह
कविताएं नाव की तरह
ज़िंदगी को अपने कंधों पर बिठाए हुए
समस्त विषादों ,वेदनाओं ,चेतनाओं और संवेदनाओं को उठाए हुए
जीवन की धुरी बन जाती हैं
जीवन का नज़रिया और जीने का ज़रिया बन जाती हैं
गहन अनुभूतियों को शब्द देती हुई
शोर भरे वातावरण में मौन परोसती हुई
आती रहती है
अशेष शुभकामनाओं के साथ
अनंत सम्भावना के साथ
अपने ऊर्जा क्षेत्र को असीमित करती हुई
अवततित होती हैं
बार बार
हर क्षण हर पल ।
तेज
poetry with different taste… but nice
thanks.
yeah,poetry is it self an experiment.experiment with inner self,thought process and expression as well as langauge.