अधूरापन

कुछ चिताएं सजी पड़ी है मेरे अरमानो की

बस उनको आग देने का काम बाकि है ।

कुछ मोहलत तो दो मुझे , साफ़ करना है दामन अपना

मुझपर कुछ दिल तोड़ने के इल्जाम बाकि है ।

खड़ा हूँ दूसरों की उमीदों की पुलिया पर

उसका टूटकर गुमनामी में बहना बाकि है ।

ठुकराया है अभी बस कुछ लोगों ने मुझे

इस जमाने का काफ़िर कहना बाकि है ।

बिखरे पड़े है जो लफ्ज मेरे जेहन में 

उनको जोडकर एक ग़ज़ल गान बाकि है ।

अभी कुछ और बदनाम होना है मुझे

कुछ लोगों के दिल में मेरा सम्मान बाकि है ।

बिखरा हूँ अभी बस कुछ टुकड़ों में

समेटकर खुद को दुनिया को दिखाना बाकि है ।

“सुथार” अभी तो नापी है बस कुछ सडकें 

मेरा सपनो के महल तक जाना बाकि है ।।

                   

  -गुलेश सुथार

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