अनकही सी एक बात
बिन माँ और पिता का एक बच्चा इसके सिवा सोचेगा भी तो क्या,
कोई बेचे तो मैं हँसी खरीद लूँ
खरीद लूँ वो गुड्डे गुड़िया
जिनकी बंद आँखे भी हँसी देती है
और खरीद लूँ वो खिलौने
जिसमें लाखों कि खुशी रहती है
खरीदना है मुझे आँचल वो माँ का
जिसके पहलू में कभी धूप नही लगती
कहाँ पाऊँ मैं जिगर बाप का
जिसके साये में कभी भूख न बिलखती
ऐसी कश्ती से मेरा सामना हर बार हो गया है
कितनी तेजी से ये शहर भी बाज़ार हो गया है
अद्भुत काव्य रचना|
Tnx 🙂
Nice poem
Thanks bhai
beautiful poem 🙂
Tnx 🙂
इक अनकहे सच को बयां करती है आपकी कवित.. लाजबाव
Thanks Kapil Bhai…
कोई बेचे तो मैं हँसी खरीद लूँ
खरीद लूँ वो गुड्डे गुड़िया
वाह वाह