अनकही सी एक बात
बिन माँ और पिता का एक बच्चा इसके सिवा सोचेगा भी तो क्या,
कोई बेचे तो मैं हँसी खरीद लूँ
खरीद लूँ वो गुड्डे गुड़िया
जिनकी बंद आँखे भी हँसी देती है
और खरीद लूँ वो खिलौने
जिसमें लाखों कि खुशी रहती है
खरीदना है मुझे आँचल वो माँ का
जिसके पहलू में कभी धूप नही लगती
कहाँ पाऊँ मैं जिगर बाप का
जिसके साये में कभी भूख न बिलखती
ऐसी कश्ती से मेरा सामना हर बार हो गया है
कितनी तेजी से ये शहर भी बाज़ार हो गया है
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Panna - November 12, 2015, 2:24 pm
अद्भुत काव्य रचना|
Vikas Bhanti - November 12, 2015, 4:16 pm
Tnx 🙂
Ajay Nawal - November 12, 2015, 3:56 pm
Nice poem
Vikas Bhanti - November 12, 2015, 4:15 pm
Thanks bhai
Anjali Gupta - November 12, 2015, 5:54 pm
beautiful poem 🙂
Vikas Bhanti - November 12, 2015, 6:18 pm
Tnx 🙂
Kapil Singh - November 12, 2015, 7:57 pm
इक अनकहे सच को बयां करती है आपकी कवित.. लाजबाव
Vikas Bhanti - November 12, 2015, 7:59 pm
Thanks Kapil Bhai…