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गरूर

कितना गरूर था डगर को अपने लम्बे होने पर लेकिन एक गरीब के हौसले ने उसे कदमों में नाप दिया ।

इबादत

खुद पर न कर गरूर इतना   खुदा भी नाराज़ हो जाएगा इबादत है इश्क़ तो रब की   की जो इबादत तो रब भी…

दिल-ए-ज़िगर ……

दिल-ए-ज़िगर ……              मेरी गुस्ताखिॅया अंदाज़–ए–इश्क थी मेरी मेरी शोखियाँ दीदारे–ए–खुदा थी तेरी मेरी वही दिल-ए-ज़िगर की शोखी पे क्यों आज बिखर गये सब जज़्बात…

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