आख़िर में क्या कर पाओगे
रंजिशें कितनी भी निभा लो
दुश्मन कितने चाहो बना लो
दोस्त जितने चाहो गँवा लो
नशा है ही ऐसा दौलत का
इसे जितना चाहो बड़ा लो
होड़ जितनी चाहे ल्गा लो
सबको पीछे छोड़ दौड़ लगा लो
आख़िर में क्या कर पाओगे
कभी तो थक हार बैठ जाओगे
अकेले फिर ख़ुद में कुरलाओगे
तब सबको साथ अपने बुलाओगे
तब साथ कोई ना ढूँढ पाओगे
…… यूई
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