आखिर क्या समझूं ???
तुम्हारी बेरुखी को
प्यार समझूं या खता समझूं
तू ही बता ना
आखिर क्या समझूं ?
सामने आकर भी मुह फेर लेते हो
बेबसी समझूं या बेवफाई समझूं
तू ही बता ना
आखिर क्या समझूं ?
रुला देते हो तुम मुझे बार-बार
किस्मत समझूं या पनौती समझूं
तू ही बता ना
आखिर क्या समझूं ?
एक प्रेमिका के हृदय की तड़प को बयां करती हुई कवि प्रज्ञा जी की बेहद संजीदा रचना
धन्यवाद
बेहतरीन
धन्यवाद
अतिसुंदर