आयत की तरह

किसी आयत की तरह रात दिन गुनगुनाता रहा हूँ तुझे,
सबकी नज़रो से बचाकर अपनी पलकों में छिपाता रहा हूँ तुझे,
मेरे हर सवाल का जबाब तू ही है मगर,
फिर भी एक उलझे सवाल सा सुलझाता रहा हूँ तुझे,
यूँ तो बसी है तू मेरी दिल की बस्ती में,
मगर फिर भी दर बदर तलाशता रहा हूँ तुझे॥
राही (अंजाना)

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