Categories: मुक्तक
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दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34
जो तुम चिर प्रतीक्षित सहचर मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष तुम्हे होगा निश्चय ही प्रियकर बात बताता हूँ। तुमसे पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…
दीया
उम्मीदों का दीया जलाकर इस आशा में बैठे हैं कल सूरज खुशियाँ लाएगा चाँद सजाकर बैठे हैं
मां ये देखो कैसा चांद निकल आया है
मां ये देखो कैसा चांद निकल आया ग्रह के गर्भ में लिपटा हैं बादलों में छुप छुप कर बैठा हैं डरा सहमा सा यह दिखता…
माँ मुझे चाँद की कटोरी में
कितना नादान था वह बचपन जब… माँ मुझे चाँद की कटोरी में खिलाती थी… मैं खाना खाने में नखरे हजार दिखाती थी… पर माँ चाँदनी…
” देश की आश “
देश की आश ^^^^^^^^^^^^^^^^ आशा है अब आज़ादी के मैं सपने देख सकूंगा, आशा है मै फिर से प्यारा भारत…
Nice poem
धन्यवाद
Nice
थैंक्स
Nyc
थैंक्स
वाह
बहुत सुंदर