कच्ची मिट्टी के हम पुतले

कच्ची मिट्टी के हम पुतले,

तपे गर जीवन भट्टी में,

तो  जगतहार  बने,

जैसे  सोना तप भट्टी में ,

अलंकार.  बने ,

कच्ची मिट्टी के हम पुतले,

अपनी. किस्मत आप गढ़े,

जैसे बरखा की कोई बूँद,

सीप में गिर मोती बने,

कच्ची मिट्टी के हम पुतले,

तपे न गर जीवन में,

तो फिर बेकार जीए,

बनते-मिटते ये जीवन क्या,

कितने ही जन्मो का चक्र,

हमने  पार. किए, जैसे

गीली मिट्टी चाक पर,

फीर- फीर  हर बार,

बने, हर बार मिटे ।

https://ritusoni70ritusoni70.wordpress.com/2016/07/12

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

जागो जनता जनार्दन

http://pravaaah.blogspot.in/2016/11/blog-post_75.htmlसमाज आज एक छल तंत्र की ओर बढ़ रहा है प्रजातंत्र खत्म हुआ। अराजकता बढ़ रही, बुद्धिजीवी मौन है या चर्चारत हे कृष्ण फिर से…

Responses

New Report

Close