कर्मयोगी
कर्मयोगी
अपने कामुक सुखों को कर दमन ,
अपने गुस्से को दया मेँ कर बदल ,
अपने लालच को दान की राह कर चलन ,
अपने स्वधर्म को अंतर्मन से कर मनन ,
अपने कार्यों को भक्ति भाव से कर भरन ,
ले विजय अब कर्म योग मेँ तूं जन्म I
अब उसकी राह पकड़ , निश्काम कर्म की राह तूँ जाएगा ,
हर कर्म कर उसे समर्पण , निष्फल अब तूँ रह पाएगा ,
अपना हर धर्म निभा , फल की चाह छोड़ तूँ पाएगा ,
अब निभा हर कर्म को भी , अकर्मी तूँ रह पाएगा ,
अब सब करके भी, मैं तुझको ना छू पाएगी I
कर्मों के बंधन को तोड़ , सब कर्मो को उससे जोड़ ,
ख़ुद मेँ उसका रुप जो पाएगा , फिर ख़ुद का कुछ ना भाएगा ,
उस चेतना को ख़ुद मेँ जगा, बस उसके ही कर्म निभायेगा ,
सब उसका खेल रचाया है , उसकी ही यह माया है ,
वोह निर्धारित कर्तव्यों को, ख़ुद तुझसे ही करवाएगा I
…… यूई विजय शर्मा
Good
बहुत खूब