कविता — व्यक्ति–विशेष
बंधु !
आज स्व. राजीव गांधी की पुण्य—तिथि है।
एक सपना और उसमें समाहित लालसा का स्मरण दिवस।
हार्दिक श्रुद्धांजलि के साथ
एक व्यक्ति — दो भाव
कविता – 01
व्यक्ति—विशेष
|| स्वप्न—भंग ||
: अनुपम त्रिपाठी
तब;
जबकि,
एक समूची पीढ़ी
निस्तेज़ कर दी गई
कोई नहीं; देख सका ………..
उन सपनों को, जो समाए थे
: इक्कीसवीं सदी के लिए !
काश !
कोई तो होता !!
वहीं–कहीं; आस—पास
(जहां लहूलुहान थी धरा और क्षत—विक्षत लाश)
जो; समेट सकता
हिंसा का विलाप
फ़िर;
उकेरता
‘कबूतर के पंख पर’
ताज़ा रक्त से
अहिंसा के स्वर
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कविता – 02
व्यक्ति—विशेष
|| एक अबूझ प्यास ||
: अनुपम त्रिपाठी
एक व्यक्ति; जो फेंटता रहा : सेना
“ताश के पत्तों सरीखा”
जिसने; ‘अहिंसा’ को ‘शतरंज’ की तरह खेला
और; जुटाता रहा ‘मेला’
शक्ति थी उसके पास —– अनुभव के नाम पर
गौरवशाली वंश—परंपरा —– सत्ता की दुकान पर
जलता पंजाब ………. पिघला न सका जिसे
कराहता नागालेंड ……… रुला न सका जिसे
बुल्लेट—प्रूफ़ ‘जैकेट’ पहने
जो; मिलता रहा : निहत्थी जनता से
वही व्यक्ति !
पिघलने लगा : “पराई आग में”
: अंतर्राष्ट्रीय छबि की लालसा !
या कि; ‘नोबल’ की चाह में !!
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21—05—2017
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वाह बहुत सुंदर रचना
Waah