” कसक मुसलसल है “
चलो आज बात करे गुज़रे जमाने की
मैंने जरूरत समझी आप सबको बताने की …..
संग उसके मुस्कुराकर समझते थे
क्या बेनज़ीर रौनक है मेरे काशाने की ….
इक मरतबा भुला ही दिया ख़ुदा को
बड़ी ख़ुशनसीब जिंदगी थी इस दीवाने की …
बेसूद हुआ एक एक अल्फ़ाज़ मेरा
जब कोई राह ना दिखी उसे मुझे चाहने की…..
वो इस क़दर रुसवा हुए मुझ से
की इक बार भी ज़रूरत ना समझी लौट आने की …
वो दिल से एक दफ़ा अपना कह देते
तो आज ग़ैरों से जरूरत न होती कहलवाने की…..
कल मोहब्त भरी निग़ाहों से तराश लेते हमें
तो आज ज़रूरत ना होती नज़रे चुराने की….
- ये दौर – ए – इखलास सदा क़ायम रहेगा ” पंकजोम ” प्रेम
बस कसक मुसलसल हैँ इंसान बदल जाने की……
पंकजोम ” प्रेम “
nice one!
Dil se dhnyawad ji….
Nice ghazal
Sukkriyaaa veere……
मोहब्त भरी निग़ाहों से तराश लेते हमें
तो आज ज़रूरत ना होती नज़रे चुराने की….
वाह वाह
आप कविता में समग्रता है