कितनी दूर है
कितनी दूर हैं अंबर धरती, क्या प्यार कभी कम होता हैं,,
गर सीने में हो दर्द धरा के, छुप छुप कर आसमां रोता हैं!!
कभी फव्वारे, कभी फिर पानी, कभी पत्थर दिल होता हैं,
पाकर नवीन सा सूक्ष्म प्यार, धरा का मन गदगद होता हैं,
हजारों फ़ोन कॉल्स सुनने पर भी एक नंबर का इंतज़ार होता हैं,
मेरी नज़र में ओ दीवानों प्यार यही बस होता हैं!!
अगर हो तकरार भूमि गगन में, भू भी कहाँ खुश रहती होगी,,
कहीं पर बंजर, कहीं पर जंगल, कहीं फिर बर्फानी सी होगी!!
अंबर भी कौन सा ऊपर खुश होकर गाता होगा,,
धरती को झकझोरने खातिर खुद तूफान लाता होगा!!
जो ना माने फिर भी पृथ्वी, फिर सूरज संग टकराता होगा,,
जैसे ही कुछ सुखी धरती, मेघ बन बरस जाता होगा,,
पाकर पावन प्यार धरा पर, फिर वसंत राज होता हैं,,
मेरी नज़र में ओ दीवानों प्यार यही बस होता हैं!!
sundar kavita
Bahut bahut dhanyabaad
Nice…..
Shukriya
Good
वाह बहुत सुंदर
Waah waah bahut khoob