कुछ न था हाथ की लकीरों में……..
कुछ न था हाथ की लकीरों में
वरना होते न क्या अमीरों में।
भरे जहान में भी कुछ न मिला
हैं खाली हाथ हम फकीरों से।
आपके प्यार से तो लगता है
बंधे हो जैसे कुछ जंजीरों से।
किसके जाने से जान जाती है
कौन रहता है वो शरीरों में।
कोई भटका हुआ ही आएगा
हम हैं तन्हा खड़े जजीरों सेे।
———सतीश कसेरा
nice poem…rightly said
Thanks Amit Sharma
kavita kahna ki kala aaki bahut achi he…
Thanks Panna
शानदार कविता