कौन किस्मत से भला जीता है……
कौन किस्मत से भला जीता है……….
ये उसके खेल का तरीका है
कौन किस्मत से भला जीता है।
पहुंच न पाते कभी मंजिल तक
रास्तों को भी साथ खींचा है।
सुबह दिल खूब लहलहायेगा
रात भर अश्क से जो सींचा है।
कोई दुआ या बद्दुआ तो नहीं
कौन करता ये मेरा पीछा है।
सुबह उठ जाये वो ऐसे-कैसे
रात भर बैठ कर तो पीता है।
लकीरें हाथ की न गिर जाएं
कस के मुट्ठी को जरा भींचा है।
………………सतीश कसेरा
Awesome poem Satish
Thanks Mohit
Wah
Good