क्यों तन्हा रहते हो..
जिंदगी एक बार दी है , ख़ुदा ने …
फिर क्यों तन्हा रहते हो…..
मैं हमराज़ हूँ , तेरे हर राज़ में ..
फिर राज़ की बातें , आबो से क्यों कहते हो……
तेरी मुस्कराहट के दीदार का दीवाना है , ये सुख़न – वर ….
बेख़बर तुम हो , लेकिन मेरी रहती है , तेरी हर नज़र पर नज़र ……
अनजान बन नहीं समझते मेरे लफ़्जो को ….
लेकिन ग़ज़ले बड़ी ग़ौर से सुनते हो ….
जिंदगी एक बार दी है ख़ुदा ने..
जरा समझ दिल की भाषा …
बड़ा बेताब है , तुम्हें कुछ समझाने को…..
ख़ामोशी में ही सही , नज़रों का इशारा दो….
आरज़ू है इसकी , तेरी धड़कन में उतर जाने को….
अपना कहकर , ग़ैरों की तरह राह में चलते हो ..
जिंदगी एक बार दी है ख़ुदा ने , फिर क्यों तन्हा रहते हो….
मैं हर लम्हें में , तेरा साथ मांगता हूँ , अपनी हर दुआ में ..
ख़ुदा के दर पर , कभी पैर ज़मीन पर , कभी हाथ आसमां में ….
बदलता है मौसम , लेकिन तुम क्यों बदलते हो…..
जिंदगी एक बार दी ख़ुदा ने , फिर क्यों तन्हा रहते हो…
Pankaj ” prem “
again a masterpiece
Sukkriyaaa brooo
nice poem pankaj
Sukktiyaa anupriya ji.
उम्दा
Sukkriyaaa brooooo……panna
Good
बहुत खूब
Nice