Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
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दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34
जो तुम चिर प्रतीक्षित सहचर मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष तुम्हे होगा निश्चय ही प्रियकर बात बताता हूँ। तुमसे पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…
शायरी संग्रह भाग 2 ।।
हमने वहीं लिखा, जो हमने देखा, समझा, जाना, हमपे बीता ।। शायर विकास कुमार 1. खामोश थे, खामोश हैं और खामोश ही रहेंगे तेरी जहां…
मां तूं दुनिया मेरी
हरदम शिकायत तूं मुझे माना करती कहां निमकी-खोरमा छिपा के रखती कहां भाई से ही स्नेह मन में तेरे यहां रह के भी तूं रहती…
रात तूं कहां रह जाती
अकसर ये ख्याल उठते जेहन में रात तूं किधर ठहर जाती पलक बिछाए दिवस तेरे लिए तूं इतनी देर से क्यूं आती।। थक गये सब…
बहुत खूब
सादर धन्यवाद जी
बहुत ही सुन्दर। Very inspirational…. salute 🙋
आपके द्वारा किये जा रहे उत्साहवर्धन हेतु सादर अभिवादन
“राहों में आए घोर निशा,…..करना खुद का पथ प्रकाश”
ये पंक्तियां बहुत ही प्रेरणादायक हैं। लेखनी को प्रणाम।
बहुत सारा धन्यवाद,
सुस्वागतम् 🙏
Very nice
Thanks
Very good
Thanks
बिल्कुल सही कहा आपने ।
सादर धन्यवाद
Atisunder kavita
बहुत बहुत धन्यवाद
Nice
Thanks