Categories: शेर-ओ-शायरी
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दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34
जो तुम चिर प्रतीक्षित सहचर मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष तुम्हे होगा निश्चय ही प्रियकर बात बताता हूँ। तुमसे पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…
पथिक
मीलों का पथ, पथरीला भी पथिक हूं मैं भी, चल दूंगा। सारे मौसम शुष्क रहे क्यों बादल हूं मैं, बदल दूंगा। भीष्म बनो तुम, कर्ण…
तेरे दर से उठे कदमों को
**तेरे दर से उठे कदमों को::गज़ल** तेरे दर से उठे कदमों को किस मंज़िल का पता दूंगा मैं, भटक जाऊंगा तेरी राह में और उम्र…
मैं तुझे अपनी वफाओं की दुहाई नहीं दूंगा
तेरी कलम को कभी अपनी रुबाई नहीं दूंगा, मैं तुझको चश्म-ए-नम की कमाई नहीं दूंगा l तेरी आंखों में वहम के कई पर्दे टंगे हुए…
मैं सूरज को किसी दिन……………….
मोहब्बत करके पछताने की खुद को यूं सजा दूंगा तुम्हें यादों में रक्खूंगा मगर दिल से भूला दूंगा। रहो बेफ्रिक तूफानों तुम्हारा दम भी रखना…
🙏🙏
Nice
बहुत सुन्दर
Nyc
Nice