छुपा है चाँद बदली में…
छुपा है चाँद बदली में ,अमावस आ गयी है क्या?
नहीं देखा कभी जिसको वही शर्मा गयी है क्या?
मिलन की रात में ये घुप्प अँधेरा क्यों सताता है ?
वो मेरा और उसका छुप छुपाना याद आता है..
अभी तो थी फ़िज़ा महकी , क़यामत आ गयी है क्या?
कभी वो थी कभी मैं था, कभी चंचल चमकती रात,
न वो कहती ,न मैं कहता मगर आँखे थी करती बात..
जिन आँखों में हया भी थी,कज़ा अब आ गयी है क्या?
वो नदियों के किनारो पर जहाँ जाता था मिलने को,
वो नदियां है क्यों प्यासी सी, बुलाती है बुलाने को,
उन्ही नदियों की रहो में रुकावट आ गयी है क्या?
नहीं देखा कभी जिसको वही शर्मा गयी है क्या?
…atr
kya baat he abhishek bhai
Shukriya dost ..
laazbaab dost!
bahut dhanyavad yar
gud one yaar
thank u .. 🙂
मेरा और उसका छुप छुपाना याद आता है..
वाह वाह बहुत खूब